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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤ JJA-S.N.48-MP High Court ✤|•༻ -

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यद्यपि हम लोक हित वाद की श्र्लाध्‍य संकल्‍पना का सवंर्धन करने और उसे बढ़ावा देने और उन निर्धन, अशिक्षित, उत्‍पीडित और जरूरतमंद लोगों के प्रति, जिनके मूल अधिकारों का उल्‍लंघन और अतिक्रमण होता है और जिनकी शिकायतों पर कोई ध्‍यान नहीं दिया जाता हे, जो प्रतिनिधित्‍व रहित और बिना सुने ही रह जाती है, आगे बढ़कर उदारता दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। फिर भी हम यह राय अभिव्‍यक्‍त किए बिना नहीं रह सकते हैं कि बाधा पहुंचाने वाले और दखल देने वाले, तमाशा देखने वाले तथा अनधिकृत मध्‍यक्षेपक, जिनका अपने व्‍यक्तिगत लाभ अथवा अपने स्‍वयं के या दूसरे के प्राक्‍सी के रूप में निजी फायदे अथवा अन्‍य असंगत प्रयोजन से या प्रचार पाने की लालसा के सिवाय वस्‍तुत: कोई लोक हित नहीं होता है। लोक हित वाद का मुखौटा पहन कर और अपने असली चेहरे को ढ़ककर कतार को तोड़ते हैं और उन संपन्‍न वादियों की, जिनके पास खाने को कुछ नहीं होता है बल्कि वे केवल कुछ बात का लाभ उठाने का प्रयास करते हैं, बल्कि तुच्‍छ और निरर्थक याचिकाएं फाइल करके न्‍यायालयों में गुहार करने में सफल हो जाते हैं और इस प्रकार न्‍यायालयों का मूल्‍यवान समय व्‍यर्थ में बरबाद कर देते हैं, जिसके परिणामस्‍वरूप न्‍यायालयों के द्वार पर लगी भीड़ कम नहीं हो पाती है। इस विलक्षण स्थिति से वास्‍तविक वादियों के मन में निराशा घर कर सकती है।
    लोक हित वाद एक ऐसा शस्‍त्र है जिसका प्रयोग बहुत ही सावधानीपूर्वक और सतर्कता से किया जाना चाहिए और न्‍यायपालिका को यह बहुत ही सावधानीपूर्वक देखना चाहिए कि लोक हित की सुंदर भावना के पीछे कुत्सित निजी दुर्भावना, निहित स्‍वार्थ और/अथवा प्रचार पाने की लालसा तो नहीं छिपी हुई है। इसका प्रयोग नागरिकों को सामाजिक न्‍याय प्रदान करने के लिए विधि के कवच के रूप में एक प्रभावशाली शस्‍त्र के रूप में किया जाना चाहिए।  

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