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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 ( जूनियर ज्यूडिशियल असिस्टेंट के न्यू बेंच प्रारंभ) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
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दुनिया भर के शिक्षाविद यह मानते हैं कि सोच, विश्लेषण अनुसंधान और निष्कर्ष प्रक्रिया का संपादन मातृभाषा में होता है। इसीलिए विश्व के अधिकांश विकसित देशों ने मातृभाषा में शिक्षा को अपना कर, भाषाओं की संस्कृति का संवर्द्धन एवं संरक्षण किया है। भाषाएं न सिर्फ क्षेत्रीय संस्कृति की वाहक होती हैं, बल्कि हजारों वर्षो से सचित ज्ञान-विज्ञान, तकनीकी की संवाहिका भी होती है। भाषा ही व्यक्ति को अपने देश, संस्कृति और मूल के साथ जोड़ती है। यदि भाषाएं नष्ट होती है तो संस्कृति को बचा पाना मुश्किल होगा।
भाषा के प्रयोग पर महात्मा गांधी यंग इंडिया पत्रिका में 2 फरवरी 1921 को लिखते हैं कि लोक-मानस तथा जन-चेतना के जागरण में जनभाषा की महती आवश्यकता है। स्वाधीनता प्राप्ति के हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में स्वराज, स्वदेशी के साथ स्वभाषा का आंदोलन अंतर्निहित था। एक ओर मध्य भारत में बिस्मिल के स्वाधीनता के गाने जनभाषा हिंदी में गूंज रहे थे तो पंजाब में इंकलाब जिन्दाबाद के नारे बुलंद हो रहे थे। गांधी जी मूलत: गुजराती होते हुए भी संपर्क भाषा के रूप में हिंदी को अपनाते हुए चंपारण से साबरमती तक करो या मरो जैसे नारे दे रहे थे, तो बंगाल से नेताजी जय हिंद का जय घोष कर रहे थे। राजाजी के नाम से प्रसिद्ध चक्रवती राजगोपालाचारी ने जहां एक ओर गीता, रामायण और महाभारत का अनुवाद अलग-अलग भाषाओं में किया तो वहीं दूसरी ओर मद्रास के स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य भाषा के रूप लागू करने की कोशिश हुई। यह स्वराज के लिए एकात्मकता एकता व एकजुटता का समय था। इसमें सभी भारतीय भाषाओं के साथ समन्वय कर हिंदी ने शताब्दियों से दबी-कुचली अस्मिता को स्वर देने का कार्य किया। यही कारण है कि सभी भारतीय भाषाओं के बीच संपर्क भाषा के रूप में हिंदी सर्वाधिक लोकप्रिय थी।
हिंदी को 14 सितम्बर 1949 को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार कर लिया गया। इसके बाद संविधान में अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा के सम्बन्ध में व्यवस्था दी गई। संविधान के अनुसार हिंदी शासकीय प्रयोजनों के लिए भारत संघ की राजभाषा के रूप में स्थापित है।
भाषा के प्रयोग पर महात्मा गांधी यंग इंडिया पत्रिका में 2 फरवरी 1921 को लिखते हैं कि लोक-मानस तथा जन-चेतना के जागरण में जनभाषा की महती आवश्यकता है। स्वाधीनता प्राप्ति के हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में स्वराज, स्वदेशी के साथ स्वभाषा का आंदोलन अंतर्निहित था। एक ओर मध्य भारत में बिस्मिल के स्वाधीनता के गाने जनभाषा हिंदी में गूंज रहे थे तो पंजाब में इंकलाब जिन्दाबाद के नारे बुलंद हो रहे थे। गांधी जी मूलत: गुजराती होते हुए भी संपर्क भाषा के रूप में हिंदी को अपनाते हुए चंपारण से साबरमती तक करो या मरो जैसे नारे दे रहे थे, तो बंगाल से नेताजी जय हिंद का जय घोष कर रहे थे। राजाजी के नाम से प्रसिद्ध चक्रवती राजगोपालाचारी ने जहां एक ओर गीता, रामायण और महाभारत का अनुवाद अलग-अलग भाषाओं में किया तो वहीं दूसरी ओर मद्रास के स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य भाषा के रूप लागू करने की कोशिश हुई। यह स्वराज के लिए एकात्मकता एकता व एकजुटता का समय था। इसमें सभी भारतीय भाषाओं के साथ समन्वय कर हिंदी ने शताब्दियों से दबी-कुचली अस्मिता को स्वर देने का कार्य किया। यही कारण है कि सभी भारतीय भाषाओं के बीच संपर्क भाषा के रूप में हिंदी सर्वाधिक लोकप्रिय थी।
हिंदी को 14 सितम्बर 1949 को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार कर लिया गया। इसके बाद संविधान में अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा के सम्बन्ध में व्यवस्था दी गई। संविधान के अनुसार हिंदी शासकीय प्रयोजनों के लिए भारत संघ की राजभाषा के रूप में स्थापित है।
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