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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Nov 25th, 04:06 by lucky shrivatri
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सोशल मीडिया प्लेटफार्मो पर सक्रियता जब लत की हद तक पहुंचने लगे तो कई तरह के शारीरिक और मानसिक विकारों से व्यक्ति के ग्रस्त होने का खतरा तय है। दुनिया में वयस्क ही नहीं, किशोर और बच्चे भी स्मार्ट फोन के जरिए दिनभर में कई घंटे आभासी मंचों पर गुजार रहे है। इस दौर में ऑस्ट्रेलिया सरकार की ओर से लाए गए उस ताजा विधेयक का स्वागत किया जाना चाहिए जिसके पारित होने पर वहां सोलह साल से कम उम्र के बच्चों पर सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर पाबंदी लग जाएगी। बडी बात यह भी कि फेसबुक, टिकटॉक, एक्स व इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को खुद बच्चों को सोशल मीडिया मंचों से दूर रखने का बंदोबस्त करना होगा। इसमें कामयाब नहीं होने पर उन्हें भारी जुर्माना भरना पड़ेगा।
सोशल मीडिया पर कम उम्र से ही बच्चों की सक्रियता को लेकर जो खतरे सामने आ रहे हैं उन्हें देखते हुए इस तरह का सख्त कदम उठाना जरूरी सा हो गया है। वजह भी साफ है बच्चों को स्मार्ट फोन थमा कर अभिभावक और स्कूलों में शिक्षक तक अपनी जिम्मेदारी से विमुख होते दिख रहे है। स्कूलों में कहीं, सिर्फ किताबी ज्ञान हावी हैं तो कहीं पूरा जोर सिर्फ गैर-शैक्षणिक गतिविधियों पर है। अर्थप्रधान दुनिया में माता-पिता के पास भी बच्चों के साथ समय बिताने की फुर्सत नहीं है। इस तरह बच्चों का न तो शिक्षकों से और न ही परिजनों से ज्यादा संवाद हो पाता है। इसी संवादहीनता के चलते बच्चों ने मोबाइल फोन और सोशल मीडिया को संवाद का जरिया बना लिया है। इससे बच्चों को पढ़ाई में एकाग्रता की कमी तो महसूस हो ही रही है, स्वास्थ्य समस्याएं भी बढ़ रही है। चिंता की बात यह भी हैं कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म बच्चों के लिए उम्र सीमा का प्रावधान तो कर देते है पर निगरानी का कोई मैकेनिज्म उनके पास नहीं होता है।
सोशल मीडिया पर कम उम्र से ही बच्चों की सक्रियता को लेकर जो खतरे सामने आ रहे हैं उन्हें देखते हुए इस तरह का सख्त कदम उठाना जरूरी सा हो गया है। वजह भी साफ है बच्चों को स्मार्ट फोन थमा कर अभिभावक और स्कूलों में शिक्षक तक अपनी जिम्मेदारी से विमुख होते दिख रहे है। स्कूलों में कहीं, सिर्फ किताबी ज्ञान हावी हैं तो कहीं पूरा जोर सिर्फ गैर-शैक्षणिक गतिविधियों पर है। अर्थप्रधान दुनिया में माता-पिता के पास भी बच्चों के साथ समय बिताने की फुर्सत नहीं है। इस तरह बच्चों का न तो शिक्षकों से और न ही परिजनों से ज्यादा संवाद हो पाता है। इसी संवादहीनता के चलते बच्चों ने मोबाइल फोन और सोशल मीडिया को संवाद का जरिया बना लिया है। इससे बच्चों को पढ़ाई में एकाग्रता की कमी तो महसूस हो ही रही है, स्वास्थ्य समस्याएं भी बढ़ रही है। चिंता की बात यह भी हैं कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म बच्चों के लिए उम्र सीमा का प्रावधान तो कर देते है पर निगरानी का कोई मैकेनिज्म उनके पास नहीं होता है।
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