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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Nov 14th, 12:30 by Jyotishrivatri
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गुवाहाटी उच्च न्यायालय के एक फैसले को बरकरार रखते हुए न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि यह सीमा किसी विशेष पार्टी को कठोर रूप से प्रभावित कर सकती है, लेकिन इसे पूरी कठोरता के साथ लागू किया जाना चाहिए, यदि विधि में वर्णित हो। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के हलफनामें को नामंजूर किया कि अबू सलेम के प्रत्यर्पण के दौरान पुर्तगाल को दिया आश्वासन भारतीय अदालतों पर बाध्यकारी नहीं है, इस मामले में, एक सार्वजनिक सड़क के निर्माण के लिए वादी की भूमि से आधिकारियों द्वारा निकाले गए पत्थरों के मुआवजे की मांग करते हुए एक मनी सूट दायर किया गया था। ट्रायल कोर्ट ने लिमिटेशन के आधार पर परिवाद खारिज करने संबंधी वाद को दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 के नियम 11 के तहत खारिज कर दिया। बाद में उन्होंने लिमिटेशन एक्ट, 1963 की धारा के तहत एक आवेदन के साथ एक और अर्जी दायर की, जिसमें उक्त मुकदमा दायर करने में 325 दिनों की देरी को माफ करने की मांग की गई थी। इस आवेदन को ट्रायल कोर्ट ने अनुमति दी थी। उक्त आदेश को रद्द करते हुए गुवाहाटी हाईकोर्ट ने माना कि लिमिटेशन एक्ट मिजोरम में लागू था और धारा 5 वादों पर लागू नहीं होती, बल्कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 के तहत आवेदनों को छोड़कर केवल अपीलों और अर्जियों पर लागू होती है। गवाहों के साक्ष्य को केवल इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि वे मृतक के रिश्तेदार है। सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के फैसले से सहमत होकर, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस प्रकार देखा जैसा कि पोपट बहरू गोवर्धन एवं अन्य बनाम विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी एव अन्य 10 एससीसी 765 मामले में इस कोर्ट द्वारा निर्णय दिया गया था और जिस पर हाईकोर्ट ने भरोसा जताया है यह तय कानून है कि लिमिटेशन से एक विशेष पार्टी कठोर रूप से प्रभावित हो सकती है लेकिन इसे अपनी पूरी कटोरता के साथ लागू किया जाना चाहिए जब कानून ऐसा निर्धारित करता है।
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