Text Practice Mode
MY NOTES 247 जूनियर ज्यूडिशियल असिस्टेंट हिंदी मोक टाइपिंग टेस्ट 3
created Nov 9th, 01:51 by Anamika Shrivastava
2
306 words
13 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
00:00
विद्वान अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्क तथ्यों के विशुद्ध प्रश्नों पर निर्णय लेने की मांग करते हैं, जिन पर केवल ट्रायल कोर्ट द्वारा ही पर्याप्त रूप से निर्णय लिया जा सकता है और ऐसा करते समय, इस मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा कानून के बिंदुओं पर प्रस्तुत किए गए तर्कों पर भी अधिक उचित रूप से विचार किया जा सकता है। आरोप पत्र और पूरी कार्यवाही को रद्द करना भी तभी किया जा सकता है, जब उसमें किसी अपराध का खुलासा न हो या कोई कानूनी बाधा हो, जो उसके आधार पर कार्यवाही को प्रतिबंधित करती हो। आर.पी. कपूर बनाम पंजाब राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय इस संबंध में कानून की स्थिति को स्पष्ट करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मान्यता प्राप्त किसी भी आधार के अभव में, जो आरोप पत्र समन आदेश आक्षेपित कार्यवाही को रद्द करने को उचित ठहरा सकता हो, उन्हें रद्द करने की प्रार्थना को अस्वीकार किया जाता है, क्योंकि मुझे न्यायालय की प्रक्रिया का कोई दुरुपयोग नहीं दिखता। ट्रायल कोर्ट को आरोप तय करने के चरण से पहले ही अभियुक्त को बरी करने के लिए पर्याप्त शक्तियां दी गई हैं, यदि दर्ज किए जाने वाले कारणों से वह आरोप को निराधार मानता है। अपीलकर्ता की ओर से उपस्थिति विद्वान अधिवक्ता श्री नीरज गुप्ता ने कहा है कि संपत्तियां प्रतिवादी संख्या 1 के पिता की हैं। विद्वान मजिस्ट्रेट ने अनुमान के आधार पर प्रतिवादी संख्या 1 की आय गलत तरीके से रुपए प्रति माह आंकी है। श्री गुप्ता ने आगे कहा है कि अपीलकर्ता ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (संक्षेप में सीआरपीसी) की धारा 91 के तहत विद्वान मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दायर किया है और उक्त आवेदन का निपटारा किए बिना ही विवादित आदेश पारित कर दिया गया है। विद्वान मजिस्ट्रेट को प्रतिवादी को उक्त आवेदन में उल्लिखित दस्तावेज, रिकॉर्ड और विवरण दाखिल करने का निर्देश देना चाहिए।
saving score / loading statistics ...