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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 (( जूनियर ज्यूडिशियल असिस्टेंट न्यू बेच प्रारंभ))संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Nov 7th, 04:09 by lovelesh shrivatri
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सुप्रीम कोर्ट ने कई अवसरों पर कहा हैं कि जितना संवैधानिक अधिकार नागरिक के गरिमापूर्ण जीवन जीने का है, उतना ही मौत के बाद उसके अंतिम संस्कार के लिए भी हैं। मरने के बाद व्यक्ति के अधिकार खत्म नहीं हो जाते। इसके बावजूद प्रदेश में शवों को बेकद्री की घटनाएं कम नहीं हो जाती हैं। ताजा ममला कटनी का हैं, जहां एक परिवार को मृत महिला का शव ले जाने के लिए मृत देह से गहने उतारकर बेचने पड़े। ऐसी शर्मसार करने वाली तस्वीरेें प्रदेश के अन्य हिस्सों से भी आती हैं। सरकार संवेदनशीलता जताते हुए अफसोस ताे जाहिर करती हैं। लेकिन ऐसी घटनाएं रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाती। राज्य में कुछ ही जिला अस्पताल व सामुदायिक स्वास्थय केंद्रों में शव वाहन हैं। कुछ जनप्रतिनिधियों ने अपनी निधि उसके लिए दी हैं। लेकिन सरकार इन वाहनों के लिए ईंधन उपलब्ध नहीं कराती हैं। और न ही उस पर तैनात स्टाफ के लिए अलग से वेतन व भत्तों की व्यवस्था होती हैं। इसलिए यह अस्पतालों के लिए बोझ से अधिक नहीं है, कुछ अफसर रेडक्रास मदद से और अस्पतालों में रोगी कल्याण समिति से होने वाली आय को इसमें खर्च करते हैं पर यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही होता हैं। यही वजह है कि जब भी किसी गरीब जरूरतमंद को शव वाहन की दरकार होती हैं तो अधिकारी से लेकर स्टाफ तक ईंधन नहीं होने या फिर टायर व दूसरे उपकरण खराब होने का बहना करते लगते हैं। निजी शव वाहन संचालकों के मजबूरी का फायदा उठाने और अनाप-शनाप दाम वसूलने के किस्से भी कम नहीं हैं। समस्या सरकारी स्तर पर शव वाहन के लिए किसी तरह की व्यवस्था नहीं बनाए जाने के कारण पेचीदा हुई हैं। एंबुलेंस के लिए सरकार ने पुरा तंत्र खड़ा कर दिया हैं। लेकिन शव के लिए किसी तरह का तंत्र नही हैं। सरकार को इसका जवाब देना चाहिए कि जब एंबुलेंस सेवा के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जा सकते हैं। तो उसी इंफ्रास्ट्रक्चर से शव वाहन भी उपलब्ध क्यों नहीं कराए जा सकते हैं। सरकार शव वाहनों के लिए रखरखाव और ईंधन के लिए बजट क्यों उपलब्ध नहीं करा सकती हैं? हर कॉल का हिसाब रखे जाने और शव वाहन के लिए गाइडलाइन बनाए जाने से स्थिति ठीक की जा सकती हैं।
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