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created Nov 5th, 14:20 by JRINSTITUTECPCT
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न्यायालय फीस अधिनियम की धारा 6 के अनुसार अधिनियम की अनुसूचियों में उल्लेखित प्रत्येक दस्तावेज जिनको न्यायालय फीस से प्रभार्य बनाया गया है पर तब तक आगे कार्यवाही नहीं की जाएगी जब तक फीस अदा नहीं की जाती। इसका तात्पर्य है कि न्यायालय फीस का भुगतान प्राथमिक शर्त है। यद्यपि परिस्थिति अनुसार सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 149 के अंतर्गत फीस के भुगतान हेतु समय दिया जा सकता है। किन्तु मामले में आगे कार्यवाही तभी करना चाहिए जब वांछित फीस भुगतान कर दी गई हो। प्रकरण के किसी भी स्तर पर यदि न्यायालय यह पाता है कि फीस कम भुगतान की गई है तब वह न्यायालय फीस अधिनियम की धारा 28 के अन्तर्गत किसी भी समय ऐसी कम भुगतान की गई फीस ली जा सकती है। यदि निर्णय के समय यह पाया जाता है कि फीस कम दी गई है तब डिक्री में यह शर्त अधिरोपित की जा सकती है कि डिक्री तब प्रभावी होगी जब देय फीस का पूर्ण भुगतान कर दिया जाए। ऐसी फीस निष्पादन न्यायालय में जमा की जा सकती है। दूसरा, शेष फीस भू-राजस्व के बकाया की तरह वसूल करने के निर्देश के साथ डिक्री की प्रति जिले के कलेक्टर को भेज सकता है। न्यायालय से यह अपेक्षित है कि प्रकरण के निराकरण के उपरांत अभिलेख को अभिलेखागार में जमा कराए जाने से पूर्व इस बात की संतुष्टि कर ले कि कहीं कोई फीस शेष तो नहीं है। अन्यथा धारा 28-ए के अनुसार प्रकरण का अभिलेख अभिलेखागार से पुन: वसूली हेतु न्यायालय को लौटाया जा सकता है। अधिनियम की प्रथम अनुसूची के अनुसार अधिकतम न्यायालय फीस एक लाख पचास हजार रूपये है। इस तरह के वादों में जहां तक अनुतोषों में से कोई अनुतोष चाहा गया है वहां उस अनुतोष के लिए पृथक से न्यूनतम एक सौ रूपये के अध्यधीन रहते हुए न्यायालय फीस देय होगी।
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