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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Nov 4th, 04:29 by Jyotishrivatri
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अभियोजिनी द्वारा उसके व्यवहार पर आपत्ति करने पर भी अभियुक्त ने अपने बर्ताव में कोई बदलाव नहीं किया और फिर उसे साथ चलने को बोला। जब उसने अभियोजिनी का रास्ता रोक लिया तो वह घबराकर उस स्थान से जाने का प्रयास कर रही थी तब अभियुक्त ने उसके नितंब पर थप्पड़ मारा। उसने ऐसा अन्य अतिथियों की उपस्थिति में किया। तब अभियोजिनी ने मेजबान से अभियुक्त की शिकायत करते हुए कहा किे उसका बर्ताव संभ्रांत लोगों की संगति के अनुकुल नहीं है। अभियोजिनी वहां उपस्थित इंटेलिजेंस ब्यूरो के ज्वाइंट डायरेक्टर से भी शिकायत किया और अपने पति जो कि वही था को भी घटना के संबंध में बताया।
लगभग 4 महीने बाद में अभियोजिनी के पति ने चीफ जुडिशल मैजिस्ट्रेट चंडीगढ़ के समक्ष अभियुक्त के खिलाफ आईपीसी की धारा 341, 342, 355 और 509 के तहत दंडनीय अपराध के लिए परिवाद दायर किया। इस पर अभियुक्त ने भी धारा 482 सीआरपीसी के तहत हाई कोर्ट में क्रिमिनल रिवीजन फाइल किया। हाईकोर्ट ने अभियोजिनी के परिवार केश कर दिया और पुलिस द्वारा रजिस्टर्ड किए गए केस पर किसी कार्यवाही को भी रोक दिया।
अब अभियोजिनी और उसके पति दोनों ने संयुक्त रूप से सुप्रीम कोर्ट में होई कोर्ट के इस फैसले को चुनौती दिया। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर चीफ ज्यूडिशल मजिस्ट्रट को धारा 354 और 509 आईपीसी के तहत मामले का संज्ञान लेने के लिए कहा। चीफ जुडिशल मैजिस्ट्रेट ने संज्ञान लेकर ट्रायल किया जिसमें अभियुक्त दोषी पाया गया। उसे धारा 354 के तहत अपराध के लिए 3 महीने कारावास और 500 का जुर्माना तथा धारा 509 के तहत अपराध के लिए 2 महीने की कैद और 300 का जुर्माना दिया गया।
अभियुक्त में सेशन कोर्ट में अपील किया सेशन कोर्ट ने दोष सिदधि को बरकारार रखा लेकिन सजा को घटाकर उसके द्वारा भोगे गए अवधि तक कर दिया और उसे प्रोबेशन पर छोड़ देने का आदेश दिया। साथ ही जुर्माने की राशि बढ़ाकर 20 हजार कर दिया गया जिसमें से आधा परिवादिनी/अभियोजिनी को मिलना था।
अभियुक्त ने इस आदेश के विरूद्ध हाई कोर्ट में अपील किया हाईकोर्ट ने भी दोष सिदद्धि में हस्तक्षेप नहीं किया लेकिन जुर्माने की राशि बढ़ाकर 20 हजार कर दिया, जो कि संपूर्ण राशि अभियोजिनी को मिलना था। हाई कोर्ट के इस निर्णय को अभियुक्त और अभियोजिनी दोनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
लगभग 4 महीने बाद में अभियोजिनी के पति ने चीफ जुडिशल मैजिस्ट्रेट चंडीगढ़ के समक्ष अभियुक्त के खिलाफ आईपीसी की धारा 341, 342, 355 और 509 के तहत दंडनीय अपराध के लिए परिवाद दायर किया। इस पर अभियुक्त ने भी धारा 482 सीआरपीसी के तहत हाई कोर्ट में क्रिमिनल रिवीजन फाइल किया। हाईकोर्ट ने अभियोजिनी के परिवार केश कर दिया और पुलिस द्वारा रजिस्टर्ड किए गए केस पर किसी कार्यवाही को भी रोक दिया।
अब अभियोजिनी और उसके पति दोनों ने संयुक्त रूप से सुप्रीम कोर्ट में होई कोर्ट के इस फैसले को चुनौती दिया। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर चीफ ज्यूडिशल मजिस्ट्रट को धारा 354 और 509 आईपीसी के तहत मामले का संज्ञान लेने के लिए कहा। चीफ जुडिशल मैजिस्ट्रेट ने संज्ञान लेकर ट्रायल किया जिसमें अभियुक्त दोषी पाया गया। उसे धारा 354 के तहत अपराध के लिए 3 महीने कारावास और 500 का जुर्माना तथा धारा 509 के तहत अपराध के लिए 2 महीने की कैद और 300 का जुर्माना दिया गया।
अभियुक्त में सेशन कोर्ट में अपील किया सेशन कोर्ट ने दोष सिदधि को बरकारार रखा लेकिन सजा को घटाकर उसके द्वारा भोगे गए अवधि तक कर दिया और उसे प्रोबेशन पर छोड़ देने का आदेश दिया। साथ ही जुर्माने की राशि बढ़ाकर 20 हजार कर दिया गया जिसमें से आधा परिवादिनी/अभियोजिनी को मिलना था।
अभियुक्त ने इस आदेश के विरूद्ध हाई कोर्ट में अपील किया हाईकोर्ट ने भी दोष सिदद्धि में हस्तक्षेप नहीं किया लेकिन जुर्माने की राशि बढ़ाकर 20 हजार कर दिया, जो कि संपूर्ण राशि अभियोजिनी को मिलना था। हाई कोर्ट के इस निर्णय को अभियुक्त और अभियोजिनी दोनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
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