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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Nov 1st, 11:11 by lucky shrivatri
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दिवाली का उत्सव दो युग, सतयुग और त्रेता युग से जुड़ा हुआ है। सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी उस दिन प्रगट हुई थी भगवान राम त्रेता युग में इसी दिन अयोध्या लौटे थे तो अयोध्या वासियों ने दीपमाला जलाकर उनका स्वागत किया था इसलिए इसका नाम दिवाली है। अत: इस पर्व के दो नाम है लक्ष्मी पूजन, जो सतयुग से जुड़ा है, दूजा दीपावली जो त्रेता युग, प्रभु राम और दीपों से जुड़ा है।
लक्ष्मी जी सागरमंथन में मिली, भगवान विष्णु ने उनसे विवाह किया और उन्हें सृष्टि की धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया। लक्ष्मी जी ने धन बांटने के लिए कुबेर को अपने साथ रखा। कुबेर धन बांटते नहीं थे। वे खुद धन के भंडारी बन कर बैठ गए। माता लक्ष्मी खिन्न हो गई, उनकी संतानों को कृपा नहीं मिल रही थी। उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई। भगवान विष्णु ने कहा कि तुम कुबेर के स्थान पर किसी अन्य को धन बांटने का काम सौंप दो। मां लक्ष्मी बोली कि यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं उन्हे बुरा लगेगा। तब भगवान विष्णु ने उन्हें गणेश जी की विशाल बुद्धि का प्रयोग करने की सलाह दी। मां लक्ष्मी ने गणेश जी को भी कुबेर के साथ बैठा दिया। गणेश जी ठहरे महाबुद्धिमान। वे बोले, मां, मैं जिसका भी नाम बताऊंगा उस पर आप कृपा कर देना, कोई किंतु परन्तु नहीं। मां लक्ष्मी ने हां कर दी। अब गणेश जी लोगों के सौभाग्य के विध्न, रूकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे। कुबेर भंडारी देखते रह गए। गणेश जी कुबेर के भंडार का द्वार खोलने वाले बन गए। गणेश जी की भक्तों के प्रति कृपा देख मां लक्ष्मी ने अपने मानस पुत्र श्रीगणेश को आाशीर्वाद दिया कि जहां वह अपने पति नारायण के संग ना हो, वहां उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें। दिवाली आती है, कार्तिक अमावस्या को, भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते है, वह जागते हैं गयारह दिन बाद देवउठनी एकादशी को। उधर मां लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने के लिए शरद पूर्णिमा से दिवाली के बीच के पंद्रह दिनों में आना होता है, इसलिए वह अपने संग ले आती हैं अपने मानस पुत्र गणेश जी को, इसलिए दिवाली को लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है।
लक्ष्मी जी सागरमंथन में मिली, भगवान विष्णु ने उनसे विवाह किया और उन्हें सृष्टि की धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया। लक्ष्मी जी ने धन बांटने के लिए कुबेर को अपने साथ रखा। कुबेर धन बांटते नहीं थे। वे खुद धन के भंडारी बन कर बैठ गए। माता लक्ष्मी खिन्न हो गई, उनकी संतानों को कृपा नहीं मिल रही थी। उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई। भगवान विष्णु ने कहा कि तुम कुबेर के स्थान पर किसी अन्य को धन बांटने का काम सौंप दो। मां लक्ष्मी बोली कि यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं उन्हे बुरा लगेगा। तब भगवान विष्णु ने उन्हें गणेश जी की विशाल बुद्धि का प्रयोग करने की सलाह दी। मां लक्ष्मी ने गणेश जी को भी कुबेर के साथ बैठा दिया। गणेश जी ठहरे महाबुद्धिमान। वे बोले, मां, मैं जिसका भी नाम बताऊंगा उस पर आप कृपा कर देना, कोई किंतु परन्तु नहीं। मां लक्ष्मी ने हां कर दी। अब गणेश जी लोगों के सौभाग्य के विध्न, रूकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे। कुबेर भंडारी देखते रह गए। गणेश जी कुबेर के भंडार का द्वार खोलने वाले बन गए। गणेश जी की भक्तों के प्रति कृपा देख मां लक्ष्मी ने अपने मानस पुत्र श्रीगणेश को आाशीर्वाद दिया कि जहां वह अपने पति नारायण के संग ना हो, वहां उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें। दिवाली आती है, कार्तिक अमावस्या को, भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते है, वह जागते हैं गयारह दिन बाद देवउठनी एकादशी को। उधर मां लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने के लिए शरद पूर्णिमा से दिवाली के बीच के पंद्रह दिनों में आना होता है, इसलिए वह अपने संग ले आती हैं अपने मानस पुत्र गणेश जी को, इसलिए दिवाली को लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है।
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