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डिक्टेशन संकलन 4 | STENOGRAPHER MERGE KHANNA |
created Oct 27th, 03:32 by StenographerPa07
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प्रिय बच्चों आपने ज्वारभाटा के बारे में अवश्य सुना होगा। समुद्र का जल प्रतिदिन दो बार चढ़ता और दो बार उतरता है। इसलिए चन्द्रमा और सूर्य के आकर्षण के कारण बार-बार समुद्र के जल में चढाव उतार होता है। चन्द्रमा आकर्षण में दूरत्व वर्ग के हिसाब से कमी होती है। पृथ्वी जल के उस भाग के अणु जो चन्द्रमा से निकट होगा, उस भाग के अणुओं की अपेक्षा जो दूर होगा, अधिक आकर्षित होंगे। चन्द्रमा की अपेक्षा पृथ्वी से सूर्य की दूरी बहत है पर उसका पिंड चन्द्रमा से बहुत ही बड़ा है। अत: सूर्य की ज्वार उत्पन्न करने वाली शक्ति चन्द्रमा से बहुत कम नहीं है, 5/9 के लगभग है। सूर्य की यह शक्ति चन्द्रमा कभी-कभी चन्द्रमा की शक्ति के प्रतिकुल होती है पर अमावस्या और पूर्णिमा के दिन दोनों की शक्तियॉं परस्पर अनुकूल कार्य करती है; अर्थात् जिस अंश में एक ज्वार उत्पन्न करेगी, उसी अंश में दूसरी भी ज्वार उत्पन्न करेगी। इसी प्रकार जिस अंश में एक भाटा उत्पन्न करेगी दूसरी भी उसी में भाटा उत्पन्न करेगी। यही कारण है कि अमावस्या और पूर्णिमा को और दिनों की अपेक्षा ज्वार अधिक ऊँची उठती है। सप्तमी और अष्टमी के दिन चन्द्रमा और सूर्य की आकर्षण शक्तियॉं प्रतिकूल रूप से कार्य करती है, अत: इन दोनों तिथियों को ज्वार सबसे कम उठती है।
ज्वालामुखी प्राय: वेग से बाहर निकलने वाले पदार्थ भूगर्भ में स्थित प्रचंड अग्नि के द्वारा जलते या पिघलते हैं और संचित भाप के वेग से ऊपर निकलते हैं। ज्वालामुखी पर्वतों से राख, ठोस और पिघली हुई चट्टानें, कीचड़, पानी, धुऑं आदि पदार्थ निकलते हैं। पर्वत के मुँह के चारों ओर इन वस्तुओं के जमने के कारण ऊँचा किनारा-सा बन जाता है। कहीं-कहीं पर प्रधान मुख के अतिरिक्त बहुत से छोटे-छोटे मुख भी इधर-उधर दूर-दूर तक फैले हुए होते हैं। ज्वालामुखी पर्वत प्राय: समुद्रों के निकट होते है। प्रशांत महासागर में जापान से लेकर पूर्वीय द्वीप समूह तक अनेक छोटे-बड़े ज्वालामुखी पर्वत हैं। इन ज्वालामुखी के संबंध में कहा जाता है कि अकेले जावा जैसे छोटे व्दीप में के 49 टीले हो सकते हैं। सन् 1883 यानी कि अट्ठारह साल पहले ककटोआ टापू में ज्वालामुखी का जैसा भयंकर स्फोट हुआ था, वैसा विस्फोट कभी नहीं देखा गया था। टापू के आस-पास प्राय: चालीस हजार आदमी समुद्र की घोर हलचल से डूब कर मर गए थे।
ज्वालामुखी प्राय: वेग से बाहर निकलने वाले पदार्थ भूगर्भ में स्थित प्रचंड अग्नि के द्वारा जलते या पिघलते हैं और संचित भाप के वेग से ऊपर निकलते हैं। ज्वालामुखी पर्वतों से राख, ठोस और पिघली हुई चट्टानें, कीचड़, पानी, धुऑं आदि पदार्थ निकलते हैं। पर्वत के मुँह के चारों ओर इन वस्तुओं के जमने के कारण ऊँचा किनारा-सा बन जाता है। कहीं-कहीं पर प्रधान मुख के अतिरिक्त बहुत से छोटे-छोटे मुख भी इधर-उधर दूर-दूर तक फैले हुए होते हैं। ज्वालामुखी पर्वत प्राय: समुद्रों के निकट होते है। प्रशांत महासागर में जापान से लेकर पूर्वीय द्वीप समूह तक अनेक छोटे-बड़े ज्वालामुखी पर्वत हैं। इन ज्वालामुखी के संबंध में कहा जाता है कि अकेले जावा जैसे छोटे व्दीप में के 49 टीले हो सकते हैं। सन् 1883 यानी कि अट्ठारह साल पहले ककटोआ टापू में ज्वालामुखी का जैसा भयंकर स्फोट हुआ था, वैसा विस्फोट कभी नहीं देखा गया था। टापू के आस-पास प्राय: चालीस हजार आदमी समुद्र की घोर हलचल से डूब कर मर गए थे।
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