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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि किसी भी मजहब का पर्सनल लॉ बाल विवाह रोकथाम अधिनियम के आड़े नहीं सकता। बचपन में विवाह पसंद का जीवन साथी चुनने का विकल्‍प छीन लेते है। एक याचिका पर फैसले में सीजेआइ डी.वाई. चंद्रचूड, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने यह भी कहा कि इस तरह की की शादियां करने वाले लागों पर मुकदमे चलाना समस्‍या का प्रभावी निवारण नहीं  रहा है। निवारक रणनीति अलग-अलग समुदायों के हिसाब से बनाई जानी चाहिए। कानून लागू करते समय समुदाय संचालित दृष्टिकोण होना चाहिए। पीठ ने बाल विवाह रोकथाम कानून के प्रभावी क्रि यान्‍वयन के लिए दिशा निर्देश भी जारी किए।
सीजेआइ चंद्रचूड ने फैसला पढ़ते कहा कि अधिकारियों को बाल विवाह की रोकथाम और नाबालिगों की सुरक्षा पर ध्‍यान केंद्रित करना चाहिए। उल्‍लंघनकर्ताओं को सजा अंतिम उपाय होना चाहिए। पीठ ने माना कि बाल विवाह निषेध कानून 2006 में कुछ खामियां है। इसे दूर करने की जरूरत है। कानून बाल विवाह की वैधता पर चुप है। इसे बाल विवाह रोकने और इसका उन्‍मूलन सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया था। यह तभी सफल होगा, जब बहु क्षेत्रीय समन्‍वय होगा।  
पीठ ने कहा कि कानून के प्रभावी कार्यान्‍वयन के लिए अधिकारियों को प्रशिक्षण देकर उनकी क्षमताएं पढ़ाई जाएं। महिला-बाल विकास मंत्रालय सभी मुख्‍य सचिवों को कार्यान्‍वयन के लिए पीठ का फैसला भेजे। एक एनजीओं की याचिका में दलील दी गई थी कि अधिनियन को अक्षरश लागू नहीं किया जा रहा है। शीर्ष कोर्ट ने अप्रैल 2018 में इस मामले में केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। सुनवाई के बाद इस साल 10 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था।    

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