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VSCTI, T.R. PURAM, MORENA, DIRECTOR SS YADAV MOB: 6263735890

created Jul 23rd, 01:37 by VSCTI MORENA


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मामले को इस प्रकार दृष्टिगत करते हुए हमारा यह विचार है कि अपीलार्थी की दोषिसिद्धि को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 से भारतीय दंड संहिता की धारा 304 के अधीन परिवर्तित करने से न्‍याय के हित की पूर्ति हो जाएगी और अपीलार्थी को आजीवन कारावास के स्‍थान पर 10 वर्ष का कठोर कारावास भोगने का दंडादेश दिया जाता है इस मामले को समाप्‍त करने से पहले यह उल्‍लेख करना महत्वपूर्ण है कि इस मामले में 1 बहुत अजीब बात यह है कि अपीलार्थी को भारत के संविधान के अनुच्‍छेद 2 और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 304 के अधीन गारंटीकृत विधि सहायता के प्रभावी अधिकार से वस्‍तुत: वंचित किया गया है इस मामले में कानूनी और संवैधानिक उपबंधों का अनुपालन ढुलमुल तरीके से किया गया प्रतीत होता है और निश्‍चित रूप से ऐसा प्रतीत होता है कि इन उपबंधों की सही मायनों में अनुपालन की गई है।
    अभियुक्‍त अपर सेशन न्‍यायालय कालपेट्टा फाइल पर 1998 के सेशन मामला संख्या 48 में अपीलार्थी है विद्वान् सेशन न्‍यायाधीश ने साक्ष्‍य का मूल्‍यांकन करते हुए यह निष्‍कर्ष निकाला है कि विजयलक्ष्‍मी की मृत्‍यु आत्‍महत्‍या का मामला नहीं है बल्कि मानववध का मामला था विद्वान् सेशन न्‍यायाधीश ने यह भी निष्‍कर्ष निकाला है कि यद्यपि अभिासाक्ष्‍य 2 बाल साक्षी है इसलिए उसका साक्ष्‍य विश्वसनीय है और मौजूदा परिस्थितियों से निश्‍चायक रूप से यह सिद्ध होता है कि अपीलार्थी ने मृतका पर मिट्टी का तेल छिड़का था तत्‍पश्‍चात् उसने आग लगा दी जिसके परिणामस्‍वरूप उसकी मृत्‍यु हो गई इसलिए दंड संहिता की धारा 302 के अधीन दंडनीय अपराध का दोषी पाया गया था विद्वान् सेशन न्‍यायाधीश ने दंड संहिता की धारा 498 के अधीन अपराध साबित करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं मिलने पर  उसे उक्‍त आरोप से दोषमुक्‍त कर दिया दंड के प्रश्न पर अपीलार्थी की सुनवाई करने के पश्चात् उसे आजीवन कारावास से दंडादिष्‍ट किया गया था अभियुक्‍त द्वारा उस दंडादेश से व्‍यथित होकर कारागार से उच्‍च न्‍ययालय में अपील फाइल की गई है।  

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