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created Jul 15th, 15:41 by karan112


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जिस प्रकार मानव को जीने के लिए भोजन और पानी के साथ सांस लेने की जरूरत होती है ठीक वैसे ही उसे भाषा की भी जरूरत होती
है। जरा सोचिए यदि भाषा होती तो हमारा जीवन कैसा होता। बिना भाषा के जीवन के बारे में हम सोच भी नहीं सकते। विचार
विनिमय तथा अपने भावों को दूसरों तक पहुंचाने के लिए ही भाषा बनी है। हालांकि मानव ने पैदा होते ही पदों की भाषा का उपयोग
करना नहीं सीख लिया था अपितु पहले पहल जब उसने समूह में रहना सीखा तो वह संकेत भाषा का उपयोग करता था। मानव हाथ के
सहारे या फिर आंखों के जरिए अपने भाव या विचार को दूसरे मानव तक पहुंचाता था। भाव तथा विचार संप्रेषण कुछ इस तरह ही शुरू
हुआ। लेकिन केवल संकेतों से मानव जो भी भाव संप्रेषित करता था वे कभी भी पूरी तरह संप्रेषित नहीं हो पाते थे। ऐसे में मानव ने
आवाज की ताकत को पहचाना और धीरे धीरे समय के साथ भाषा का निर्माण किया। भाषा कई सारी आवाजों का एक ऐसा समूह है
जो किसी भी मानव के भावों विचारों को दूसरे मानव तक संप्रेषित करने में पूरी तरह सक्षम है। इतना ही नहीं आज इंसान के लिए
भाषा भोजन पानी के समान ही जरूरी बन चुकी है। भाषा यानी आवाज ने आज अपने कई रूप विकसित कर लिए हैं और उनमें से एक
संगीत भी है। संगीत जो मानव के मन की गहराइयों तक उतर कर उसे एक अलग ही तरह ही शांति प्रदान करता है। यह मानव मन को
कभी हलका तो कभी भारी कर देता है। आज संगीत जाने कितने ही लोगों के जीवन का अंश बन चुका है। दुनिया भर में कितनी
भाषाएं बोली जाती है। इसका ठीक ठीक अंदाजा कोई भी नहीं लगा सकता है। कोई भाषा विशेष किसी विशेष मानव समुदाय में पैदा
होती है और आगे चल कर उस समुदाय विशेष की पहचान बन जाती है। जैसे समय के साथ मानव में बदलाव आता है वैसे ही भाषा भी
मानव की जरूरतों के अनुसार अपना रूप बदल लेती है। इसलिए किसी भी भाषा का रूप सदैव एक जैसा नहीं रहता। समय के अनुसार
उसकी संरचना में ही नहीं अपितु उसकी पदावली में भी बदलाव आता है। समय की जरूरत मांग के अनुसार कभी भाषा में कुछ नए पद
जुडते हैं तो कभी कुछ पद उस भाषा से बाहर हो जाते है। ऐसा इसलिए होता है कि कई बार कुछ पद उपयोग नहीं होते और फिर धीरे
धीरे वे भाषा से गायब हो जाते हैं। भाषा के बिना मानव के ऐसे विकसित जीवन के बारे में सोचना बहुत कठिन है। यदि भाषा होती तो
शायद मानव जीवन तो होता परंतु बहुत कठिन और परिश्रम से भरपूर होता। वह भाषा ही है जिसके कारण मानव ने आज हर क्षेत्र में
प्रगति की है। विकास की प्रक्रिया में भाषा का दायरा भी बढता जाता है। यही नहीं एक समाज में एक जैसी भाषा बोलने वाले लोगों
का बोलने का ढंग तथा उनकी वाणी प्रक्रिया पद और कथन की रूप रेखा आदि अलग अलग हो जाने से उनकी भाषा में बहुत बडा
अंतर जाता है। इसी को हम शैली भी कह सकते हैं। भाषा वह साधन है जिसके जरिए इंसान बोलकर सुनकर तथा लिखकर अपने
मन के भावों या विचारों का आदान प्रदान करता है।
 

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