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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Jun 11th, 04:07 by lovelesh shrivatri
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पॉच साल से छोटे बच्चे को उचित पोषण नहीं मिले तो उनमें कुपोषण जनित दुर्बलता होना स्वाभाविक है। पॉच साल तक के बच्चे में खाद्य गरीबी यानी पोष्टिक आहार तक पहुंच न होने की स्थिति को लेकर यूनिसेफ की ताजा रिपोर्ट बताती हैं कि दुनिया के विकसित कहे जाने वाले देशों में भी बच्चों में कुपोषण की समस्या बनी हुई है। रिपोर्ट में यह तथ्य चौकाने वाला है कि दुनिया का हर चौथा बच्चा गंभीर कुपोषण का शिकार है। एक तरफ हम विकास की पट्टी पर सरपट का दावा करते है, दूसरी तरफ उन बच्चों की सेहत की अनदेखी कर रहे हैं जिन्हें आगे चलकर अपने-अपने क्षेत्रों में काम करना है। खाद्य गरीबी का पैमाना शरीर के लिए जरूरी मूलभूत खाद्य पदार्थो जैसे रोटी, चावल, दाल, फल, दूध आदि के अभाव को परिलक्षित करता है।
जो तस्वीर सामने है उसको देखकर यह कहा जा सकता हैं कि सीमेंट कंक्रीट की इमारतों, व तकनीक के क्षेत्र में नित नई ऊंचाइयों के पायदान पर पहुंचने भर ही विकास नहीं होता। हमें उन जीवित संरचनाओं पर भी ध्यान देना होगा जिनके बल पर ही दुनिया जीवन के तमाम क्षेत्रों में बुलंदियों तक पहुंचन की उम्मीद रखती है। पर्याप्त पोषण के अभाव में ऐसे बच्चों का भविष्य आखिर कैसा होगा? या तो ये बच्चे जीवित ही नहीं रह पाएंगे और उन्हें कुछ उम्र मिल भी गई तो यह तय हैं कि ठीक तरह से जीवत जीने की स्थिति में नहीं रहने वाले। पर्याप्त पोषण के बिना आखिर हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि हमारी यह भावी पीढ़ी दुनिया को कुछ नया देने में सफल होगी। ऐसे बच्चे तो बोझ ही बन कर रहने वाले है। दुनिया के तमाम देशों को इस तथ्य को समझना होगा। दुर्भाग्य से खाद्य गरीबी के कारण निशाने पर आ रही बच्चों की इस दुनिया में हमारा देश भी शामिल है। भीषण खाद्य गरीबी भारत में 40 प्रतिशत है। मध्यम खाद्य गरीबी में हम 36 प्रतिशत पर है। दोनों में सिर्फ अफगानिस्तान ही है, जो हमसे खराब हालत में है। खाद्य गरीबी को लेकर हमारे देश की इस तस्वीर को बदलने के लिए पिछले सालों में खूब काम हुआ है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। खाद्य सुरक्षा योजना के तहत परिवारों तक पहुंचाया जाने वाला खाद्यान्न इसी कामकाज का हिस्सा है। फिर भी जो हालात हैं, उसमें हम स्थिति को ज्यादा बेहतर नहीं कर सकते।
जो तस्वीर सामने है उसको देखकर यह कहा जा सकता हैं कि सीमेंट कंक्रीट की इमारतों, व तकनीक के क्षेत्र में नित नई ऊंचाइयों के पायदान पर पहुंचने भर ही विकास नहीं होता। हमें उन जीवित संरचनाओं पर भी ध्यान देना होगा जिनके बल पर ही दुनिया जीवन के तमाम क्षेत्रों में बुलंदियों तक पहुंचन की उम्मीद रखती है। पर्याप्त पोषण के अभाव में ऐसे बच्चों का भविष्य आखिर कैसा होगा? या तो ये बच्चे जीवित ही नहीं रह पाएंगे और उन्हें कुछ उम्र मिल भी गई तो यह तय हैं कि ठीक तरह से जीवत जीने की स्थिति में नहीं रहने वाले। पर्याप्त पोषण के बिना आखिर हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि हमारी यह भावी पीढ़ी दुनिया को कुछ नया देने में सफल होगी। ऐसे बच्चे तो बोझ ही बन कर रहने वाले है। दुनिया के तमाम देशों को इस तथ्य को समझना होगा। दुर्भाग्य से खाद्य गरीबी के कारण निशाने पर आ रही बच्चों की इस दुनिया में हमारा देश भी शामिल है। भीषण खाद्य गरीबी भारत में 40 प्रतिशत है। मध्यम खाद्य गरीबी में हम 36 प्रतिशत पर है। दोनों में सिर्फ अफगानिस्तान ही है, जो हमसे खराब हालत में है। खाद्य गरीबी को लेकर हमारे देश की इस तस्वीर को बदलने के लिए पिछले सालों में खूब काम हुआ है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। खाद्य सुरक्षा योजना के तहत परिवारों तक पहुंचाया जाने वाला खाद्यान्न इसी कामकाज का हिस्सा है। फिर भी जो हालात हैं, उसमें हम स्थिति को ज्यादा बेहतर नहीं कर सकते।
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