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JR CPCT INSTITUTE, TIKAMGARH SPECIAL SSC GRADE C AND D MOB 9399470596
created May 21st, 15:38 by Faizan Raza
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महोदय, इस तरह की गतिविधियों से जमीन से जुड़े कार्यकर्त्ताओं में धर्म संकट जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इनके लिए सही विचारधारा का चुनाव करना अत्यंत जटिल हो जाता है। अनेक नेता अगर किसी दूसरी पार्टी से समझौता कर लेते हैं तो उनके लिए एक खालीपन आ जाता है इसका उदाहरण हम पिछले दिनों हुए कांग्रेस का बहुजन समाज पार्टी से हुए गठबंधन से ले सकते है । इस गठबंधन के साथ उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ा गया । पार्टी को चुनाव में स्थान तो पहले की है अपेक्षा अधिक अच्छा मिला किंतु इन दोनों पार्टी के जमीनी कार्यकर्त्ताओं के लिए यह एक असमंजस की स्थिति थी । जिस पार्टी की विचारधारा ही कांग्रेस की विचारधारा से एकदम हट कर हो उन कार्यकर्त्ताओं द्वारा ऐसा समझौता अपनी भावनाओं के साथ समझौता जैसा ही था। आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक व अन्य विचारों पर एक-दूसरे से बिल्कुल विपरीत होने के पश्चात् भी पार्टियों के उच्चस्तर के नेताओं द्वारा समझौता हुआ। इसका बुरा असर उन क्षेत्रीय कार्यकर्त्ताओं पर पड़ा जिन स्थानों पर केवल बसपा के नेताओं ने चुनाव लड़ा। वहाँ कांग्रेस के कार्यकर्ता अपने आप को खाली-सा अनुभव कर रहे थे। यदि उच्च स्तर के नेता बसपा से समझौता करते हैं तो जमीनी कार्यकर्त्ता अपनी दशकों से चली आ रही नीतियों को एक तरफ कैसे रख दें । परिणामस्वरूप ऐसे कार्यकर्त्ताओं की राजनीति के प्रति उदासीनता बढ़ी हैं। छोटे कांग्रेसी कार्यकर्त्ता एक नई स्थिति को लेकर भ्रम में पड़े हुए हैं कि लगभग दो वर्ष पहले जब श्री अर्जुन सिंह ने अपनी नई पार्टी का गठन किया तो जमीन से जुड़े कार्यकर्त्ता भी आपस में बँट गए। इस दौरान एक लोकसभा व कई राज्यों के विधान सभा के चुनाव भी हुए जिसमें इन बँटे हुए कार्यकर्त्ताओं ने एक-दूसरे की आलोचना की और दोनों पार्टियों में काफी तनाव की स्थिति रही और कांग्रेस का चुनाव में हारने का कारण, कांग्रेस रही और एक समय में कांग्रेस के कार्यकर्ता अपने आपको सिद्धांत के आधार पर बँटा देख कर काफी असमंजस में अनुभव कर रहे थे, वहीं कार्यकर्त्ता चुनावों के दौरान काफी उत्तेजक हो गए। अब उन्हीं कार्यकर्त्ताओं को एक ही पार्टी में होना पड़ा है क्योंकि उनके शीर्षस्थ नेताओं में विलय का समझौता हो गया है। अंतः यह जमीन से जुड़े कार्यकर्त्ताओं के लिए एक अजीबो-गरीब स्थिति थी ।
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महोदय, इस तरह की गतिविधियों से जमीन से जुड़े कार्यकर्त्ताओं में धर्म संकट जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इनके लिए सही विचारधारा का चुनाव करना अत्यंत जटिल हो जाता है। अनेक नेता अगर किसी दूसरी पार्टी से समझौता कर लेते हैं तो उनके लिए एक खालीपन आ जाता है इसका उदाहरण हम पिछले दिनों हुए कांग्रेस का बहुजन समाज पार्टी से हुए गठबंधन से ले सकते है । इस गठबंधन के साथ उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ा गया । पार्टी को चुनाव में स्थान तो पहले की है अपेक्षा अधिक अच्छा मिला किंतु इन दोनों पार्टी के जमीनी कार्यकर्त्ताओं के लिए यह एक असमंजस की स्थिति थी । जिस पार्टी की विचारधारा ही कांग्रेस की विचारधारा से एकदम हट कर हो उन कार्यकर्त्ताओं द्वारा ऐसा समझौता अपनी भावनाओं के साथ समझौता जैसा ही था। आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक व अन्य विचारों पर एक-दूसरे से बिल्कुल विपरीत होने के पश्चात् भी पार्टियों के उच्चस्तर के नेताओं द्वारा समझौता हुआ। इसका बुरा असर उन क्षेत्रीय कार्यकर्त्ताओं पर पड़ा जिन स्थानों पर केवल बसपा के नेताओं ने चुनाव लड़ा। वहाँ कांग्रेस के कार्यकर्ता अपने आप को खाली-सा अनुभव कर रहे थे। यदि उच्च स्तर के नेता बसपा से समझौता करते हैं तो जमीनी कार्यकर्त्ता अपनी दशकों से चली आ रही नीतियों को एक तरफ कैसे रख दें । परिणामस्वरूप ऐसे कार्यकर्त्ताओं की राजनीति के प्रति उदासीनता बढ़ी हैं। छोटे कांग्रेसी कार्यकर्त्ता एक नई स्थिति को लेकर भ्रम में पड़े हुए हैं कि लगभग दो वर्ष पहले जब श्री अर्जुन सिंह ने अपनी नई पार्टी का गठन किया तो जमीन से जुड़े कार्यकर्त्ता भी आपस में बँट गए। इस दौरान एक लोकसभा व कई राज्यों के विधान सभा के चुनाव भी हुए जिसमें इन बँटे हुए कार्यकर्त्ताओं ने एक-दूसरे की आलोचना की और दोनों पार्टियों में काफी तनाव की स्थिति रही और कांग्रेस का चुनाव में हारने का कारण, कांग्रेस रही और एक समय में कांग्रेस के कार्यकर्ता अपने आपको सिद्धांत के आधार पर बँटा देख कर काफी असमंजस में अनुभव कर रहे थे, वहीं कार्यकर्त्ता चुनावों के दौरान काफी उत्तेजक हो गए। अब उन्हीं कार्यकर्त्ताओं को एक ही पार्टी में होना पड़ा है क्योंकि उनके शीर्षस्थ नेताओं में विलय का समझौता हो गया है। अंतः यह जमीन से जुड़े कार्यकर्त्ताओं के लिए एक अजीबो-गरीब स्थिति थी ।
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