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Malti Computer Center Tikamgarh

created Apr 16th, 02:54 by Ram999


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काम करने का तथा किसी व्यवसाय में अभिरुचि होने का कारण यह है कि एक सी स्थिति में रहते हुए मनुष्य को उकता हट पैदा होती है। यह स्वाभाविक भी है। मनोरंजन की आवश्यकता सभी को होती है। सन्तमहात्मा भी प्रकृति दर्शन और तीर्थ यात्रा आदि के रूप में मनोरंजन प्राप्त किया करते हैं। यह उकताहट यदि सम्हालीन जाय तो किसी व्यसन के रूप में ही फूटती है। व्यसन की शुरुआत खाली समय में कुसंगति के कारण ही होती है। आजकल इस प्रकार के साधनों की किसी प्रकार की कमी नहीं है। निरुत्साह और मानसिक थकावट दूर करने के लिये विविध मनोरंजन के साधन आज बहुत हो गये हैं किन्तु समय के सदुपयोग और जीवन की सार्थकता की दृष्टि से, इनमें से उपयोगी बहुत कम ही दिखाई देते हैं। अधिकांश तो धनसाध्य और मनुष्य का नैतिक पतन करने वाले ही हैं। इसलिए यह भी आवश्यक हो गया है कि जब कुछ समय श्रम से उत्पन्न थकावट को दूर करने के लिए निकालें तो यह भली भांति विचार कर लें कि यह जो समय उक्त कार्य में लगाने जा रहे हैं उसका आत्मविकास के लिये क्या सदुपयोग हो रहा है। मनोरंजन केवल प्रसुप्त वासना की पूर्ति के लिये हो वरन उसमें भी आत्मकल्याण की भावना बनी रहे तो उस समय का उपयोग सार्थक माना जा सकता है। फुरसत और खाली समय का उपयोग अच्छे बुरे किसी भी काम में हो सकता है। नवीनज्ञान, कला, लेखन, से नई सूझ जागृत होती है। इससे अपना समाज दोनों का कल्याण होता है। सत्कर्म में लगाये हुए समय से मनुष्य का जीवन सुखी, समुन्नत तथा उदात्त बनता है। जापान की उन्नति का प्रमुख कारण फुरसत के समय का सदुपयोग ही है। वहां सरकारी काम के घण्टों के बाद का समय लोग, छोटे छोटे खिलौने, इलेक्ट्रानिक सामान आदि बनाने में लगाते हैं, खाली समय का उपयोग जिस प्रकार के कामो में करेंगे वैसी ही उन्नति अवश्य होगी। आलस में समय गंवाने वाले कुसंग से उल्टे रास्ते तैयार करते हैं। कहते हैं खाली दिमाग शैतान का घर। जब कुछ काम नहीं होता तो खुराफात ही सूझती है। जिन्हें किसी सत्कार्य या स्वाध्याय में रुचि नहीं होती खाली समय में कुसंगति, दुर्व्यसन, ताशतमाशे और तरह तरह की बुराइयों में हीअपना समय बिताते हैं। समाज में अव्यवस्था का कारण कोई बाहरी शक्ति नहीं होती, अधिकांश बुराइयां, कलह और झंझट उत्पन्न करने का श्रेय उन्हीं को है जो व्यर्थ में समय गंवाते रहते हैं। मनुष्य लम्बे समय तक निष्प्रयोजन खाली बैठा नहीं रह सकता अतएव यदि वह भले काम नहीं करता तो बुराई करने में उसे देर लगेगी। उसे अच्छा या बुरे,सच्चा हो चाहे काल्पनिक, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कुछ कुछ करना ही होगा। इसलिये यदि उसे सही विषय मिले तो वह बुराइयां ही ग्रहण करता हैऔर उन्हें ही समाज में बिखेरता हुआ चला जाता है। मनुष्य के अंतकरण में हीउसका देवत्व और असुरत्व मौजूद है। जब तक हमारा देवता जागृत रहता है और हम विभिन्न कल्याणकारी कामो में संलग्न रहते हैं तब तक आन्तरिक असुरता भी दबी हुई रहती है पर यह प्रसुप्तवासनायें भी अवकाश के लिये चुपचाप अन्तर्मन में जगती रहती हैं समय पाते ही देवत्व पर प्रहार कर बैठती हैं।

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