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Malti Computer Center Tikamgarh
created Apr 4th, 02:27 by Ram999
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भगवान विष्णु का विख्यात तिरूपति वेंकटेश्वर मन्दिर आन्ध्रप्रदेश के चित्तूर जिले के तिरूपति में स्थित है। तिरूमला के सात पर्वतों में से एक वेंकटाद्रि पर बना श्रीवेंकटेश्वर मन्दिर यहां आकर्षण का केन्द्र है। इसलिए इसे सात पर्वतों का मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मन्दिर में प्रतिवर्ष लोखों की संख्या में भक्तजन दर्शनों के लिए आते हैं। कई शताब्दी पूर्व बने इस मन्दिर की सबसे ख़ास बात इसकी दक्षिण भारतीय वास्तुकला और है शिल्पकला का अदभुत संगम है। चूंकि, तिरूपति भारत के सबसे विख्यात तीर्थ स्थलों में से एक है, इसलिए यहां स्थित वेंकटेश्वर मन्दिर को दुनिया में सबसे अधिक पूजनीय स्थल कहा गया है। प्रतिदिन इस मन्दिर में एक से दोलाख लोग आते हैं, जबकि किसी ख़ास अवसर या त्योहार में आने वाले लोगों की संख्या लगभग 5 लाख तक पहुंच जाती है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार, इस मन्दिर में स्थापित भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति में ही भगवान बसते हैं और वे यहां समूचे कलियुग में वरिाजमान रहेंगे। कहा जाता है कि चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं का आर्थिक रूप से इस मन्दिर के निर्माण में ख़ास योगदान रहा है। चूंकि भगवान वेंकटेश्वर को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, इसलिए धारणा है कि प्रभु श्रीविष्णु ने कुछ समय के लिए तिरूमला स्थित स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था। मन्दिर से सटे पुष्करणी पवित्र जलकुण्ड के पानी का प्रयोग केवल मन्दिर के कामों, मतलब भगवान की प्रतिमा को साफ़ करने, मन्दिर परिसर को साफ करने आदि के कामों में ही किया जाता है। इस कुण्ड का जल पूरी तरह से स्वच्छ और कीटाणु रहित है। लोग इस कुण्ड के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। माना जाता है कि वैकुण्ठ में विष्णु इसी कुण्ड में स्नान किया करते थे। यह भी माना जाता है कि जो भी इस में स्नान कर ले, उसके सारे पाप धुल जाते हैं और सभी सुख प्राप्त होते हैं। बिना यहां डुबकी लगाए कोई भी मन्दिर में प्रवेश नहीं कर सकता है। डुबकी लगाने से शरीर और आत्मा पूरी तरह से पवित्र हो जाते हैं। दरअसल, तिरूमला के चारों ओर स्थित छोटे-पर्वत, शेषनाग केसात फनों के आधार पर बनी सप्तगिरी कहलाते हैं। श्रीवेंकटेश्वर का यह मन्दिर सप्तगिरि के सातवें पर्वत पर स्थित है, जो वेंकटाद्रि के नाम से विख्यात है। माना जाता है कि वेंकट पर्वतों के स्वामी होने के कारण ही विष्णु भगवान को वेंकटेश्वर कहा जाने लगा। इन्हें सात पर्वतों का भगवान भी कहा जाता है। भगवान वेंकटेश्वर को बालाजी, गोविन्दा और श्रीनिवास के नाम से भी जाना जाता है। दर्शन करने वाले भक्तों के लिए विभिन्न स्थानों तथा बैकों से एक विशेष पर्ची कटती है। इसी पर्ची के माध्यम से श्रद्धालु भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन कर सकते हैं। यहां पर बिना किसी भेदभाव व रोकटोक के किसी भी जाति व धर्म के लोग आजा सकते हैं, क्योंकि इस मन्दिर का पट सभी धर्मानुयायियों के लिए खुला है। परिसर में कृष्ण देवर्या मंडपम आदि बने हुए हैं। मन्दिर के दर्शन के लिए तिरूमलापर्वत माला पर पैदल यात्रियों के लिए तिरूमलातिरूपतीदेव स्थानम नामक विशेष मार्ग बनाया गया है। इसके द्वारा प्रभु तक पहुंचने की चाहत पूरी की जा सकती है।
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