Text Practice Mode
साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Apr 1st, 05:47 by Sai computer typing
1
301 words
8 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
00:00
सड़कों पर वाहनों के दबाव और प्रदूषण की रोकथाम की दिशा में महानगरों और बड़े शहरों में मेट्रों रेल नेटवर्क को बेहतर विकल्प माना जाता रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए राजधानी दिल्ली समेत कई बड़े शहरों में नगरीय यातायात के लिए मेट्रो रेल नेटवर्क बिछाया गया है। लेकिन चिंता इस बात की हैं कि परिवहन का सबसे सुगम व सुविधाजनक माध्यम माना जाने वाला मेट्रों रेल नेटवर्क कमोबेश हर जगह घाटे में चल रहा है। दूसरे शहरों की बात तो छोड़ें, राजधानी दिल्ली का सुविधाओं से परिपूर्ण व सुव्यवस्थित नेटवर्क भी घाटे में जा रहा है।
दिल्ली में भी जहां हर दिन 65 लाख यात्री मेट्रों में सवार होते हैं और जयपुर में भी जहां हर दिन पचास हजार यात्री आवागमन के लिए मेट्रों को चुनते है, मेट्रो रेल नेटवर्क का संचालन घाटे में है। हालत यह है कि मेट्रो शुरू होने के बाद किसी भी साल में यह लाभ की स्थिति में नहीं आ पाया है। विडम्बना यह है कि लगातार घाटे के बावजूद सरकारी स्तर पर मेट्रो रेल नेटवर्क के विस्तार के प्रयास भी निरंतर हो रहे है। देश के 21 शहरों में मेट्रों ट्रेन चल रही है और आने वाले तीन-चार साल में आधा दर्जन अन्य शहर इस सुविधा वाली फेहरिस्त में शामिल होने वाले है। घाटे की स्थिति में मेंट्रों का विस्तार नहीं करने की बात को भले ही उचित नहीं कहा जाए पर मेट्रो रेल नेटवर्क जहां-जहां भी है वहां इसके घाटे में रहने के कारणों की तरफ तो जाना ही होगा। यह देखना ही होगा कि मेट्रो की सुविधा जारी रखते हुए घाटा कम या खत्म कैसे किया जा सकता है। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि छोटे-बड़े शहरों को मिलाकर देखा जाए तो सालाना पौने दो लाख करोड़ रूपए से अधिक का नुकसान लम्बे समय तक नहीं झेला जा सकता।
दिल्ली में भी जहां हर दिन 65 लाख यात्री मेट्रों में सवार होते हैं और जयपुर में भी जहां हर दिन पचास हजार यात्री आवागमन के लिए मेट्रों को चुनते है, मेट्रो रेल नेटवर्क का संचालन घाटे में है। हालत यह है कि मेट्रो शुरू होने के बाद किसी भी साल में यह लाभ की स्थिति में नहीं आ पाया है। विडम्बना यह है कि लगातार घाटे के बावजूद सरकारी स्तर पर मेट्रो रेल नेटवर्क के विस्तार के प्रयास भी निरंतर हो रहे है। देश के 21 शहरों में मेट्रों ट्रेन चल रही है और आने वाले तीन-चार साल में आधा दर्जन अन्य शहर इस सुविधा वाली फेहरिस्त में शामिल होने वाले है। घाटे की स्थिति में मेंट्रों का विस्तार नहीं करने की बात को भले ही उचित नहीं कहा जाए पर मेट्रो रेल नेटवर्क जहां-जहां भी है वहां इसके घाटे में रहने के कारणों की तरफ तो जाना ही होगा। यह देखना ही होगा कि मेट्रो की सुविधा जारी रखते हुए घाटा कम या खत्म कैसे किया जा सकता है। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि छोटे-बड़े शहरों को मिलाकर देखा जाए तो सालाना पौने दो लाख करोड़ रूपए से अधिक का नुकसान लम्बे समय तक नहीं झेला जा सकता।
saving score / loading statistics ...