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Malti Computer Center Tikamgarh

created Apr 1st, 02:14 by Ram999


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जिस  दिन इंसान ने चांद पर कदम रखा था ठीक उसी दिन से एक विशेष विचारधारा के लोगों ने यह भ्रम फैलाया कि इंसान कभी  चांद पर गया ही चीजें दी जा सकती हैं। हो सकता है कि मनुष्य को चांद पर भेजने में अमेरिका की कई सारे निजी हित शामिल हो इन से कोई इंकार नहीं करता। लेकिन मनुष्य के चांद पर जाने  से जो लाभ मानव जाति को हुआ है वह अतुलनीय है और उससे केवल अमेरिका को ही नहीं पूरी मानव जाति को लाभ नहीं। कुछ लोग कह रहे थे कि चांद जाने में अमेरिकी सरकार इतना पैसा क्यों खर्च कर रही है जबकि इस पैसे से अनेक गरीब लोगों को शिक्षा स्वास्थ्य जैसी मूल भूत हुआ है। ५० वर्ष पहले अब आपोलो मिशन चांद पर गया तब उसने ऐसी गहरी तकनीकों का आविष्कार किया जिन से मानव जीवन मानव जीवन को बहुत गहरा लाभ पहुंचा है। जैसे जब अपोलो को किया जाता था तब इंजीनियरों के सामने वाइब्रेशन की समस्या आई। जिस समय अपोलो को लांच किया जाता तब बहुत ही भयंकर वाइब्रेशन का इंजीनियरों को सामना करना होता। इसके लिए तकनीक का अविष्कार किया गया और आज ये ही तकनीक गगनचुंबी बिल्डिंग में  भूकंप रोकने के लिए उपयोग होती है। अगर अपोलो मिशन केलिए तकनीक का अविष्कार ना हुआ होता तो आज इतनी भव्यत था गगनचुंबी इमारतें बनाना संभव नहीं हो पाता और भूकंप से भी कई लोग जान गंवा चुके होते, रेलवे लाइन और रेलवे के भारी यातायात सहन करने वाले पुल भी इतनी मजबूती के साथ कभी ना  बन पाते। नासा के जो चांद पर जा रहे थे उनके स्वास्थ्य की जांच करने के लिए मेडिकल बनाए गए थे। जो आज हर एक अस्पताल में इस्तेमाल होते हैं और इंसान के दिल, सांस और खून केस्तर का लाइव टेलीकास्ट उपलब्ध कराते हैं। जरा सोचिए यह तकनीक मरीजों के लिए कितनी लाभप्रद है जो अपोलो मिशन के दौरान खोजी गईं थीं। जिस समय अपोलो चांदपर उतरा था अंतरिक्ष यात्रियों को विकिरण रोधी चादर से ढका गया था  जिसे रेडियंट बैरियर इंसुलेशन कहा जाता है। इसका  उपयोग आज कहीं पर आग लग जाने पर लोगों को सुरक्षित निकाल ने में किया जाता है। फायरफाइटर्स भी इस का उपयोग करते  हैं। परिधान खास फाइबर से तैयार किएगए थे जिन में आग नहीं लगती थी। इन्हीं परिधानों का उपयोग आज सेना फायरफाइटर्स और विभिन्न संगठनों केलोग आपात स्थिति में यादेश की रक्षा में करते हैं। अपोलो मिशन केअंतरिक्ष यात्रियों के लिए खासतौर पर हेयरिंग गैजेट बनाए गए थे जो उन्हें सुनने में मदद करते थे। आज यही गैजेट हमारे वह दिव्यांग भाई बहनों प्रयोग करते हैं जो सुन नहीं करते या जिनकी सुनने की क्षमता की सुनने काफी कम होती है। सोचिए अगर यह सब ना होता तो कितने लोग अपने जीवन से ज्यादा हाथ गंवा चुकेहोते हैं या फिर उसका अनंद नहीं उठा पाते। प्रकृति हमें खोजी बने रहने के लिये प्रेरित करती हैं और हमें अलोचकों की चिन्ता कि ये बिना यह करते रहना चाहिए।

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