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II जय सेवा II II CPCT EXAM II II CHHINDWARA M.P. II II राजभाषा पर समालोचनात्मक दृष्टि II
created Mar 17th, 06:45 by kingmaster
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संविधान के अनुच्छेद 343 मे हिन्दी को राजभाषा के रूप मे प्रतिष्ठत हुए एक लम्बा समय होने आया है, लेकिन आज भी वह एक प्राणविहीन मूर्ति के रूप मे संविधान के पन्नों की शोभा मात्र बढ़ा रही है। कहने को तो हिन्दी को भारत की राजभाषा कहा जाता है लेकिन वह अब तक अपना यथोचित स्थान नहीं बना पाई है। संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में यह स्पष्ट रूप से प्रावधान किया गया है कि संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। लेकिन साथ ही साथ उसमें इतने किन्तु लेकिन व परन्तुक लगा दिये गये कि वह आज तक उन्हीं के मायाजाल में फैंसी हुई है। अनुच्छेद 343 के खण्ड (2) में ही एक परन्तुक लगाकर यह व्यवस्था कर दी गई कि- इस संविधान के प्रारंभ से पन्द्रह वर्ष की अवधि तक संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का पूर्ववत प्रयोग किया जाता रहेगा। खण्ड (3) तो इससे एक कदम और आगे बढ़ गया और उसमें यह कह दिया गया कि- संसद उक्त पन्द्रह वर्ष की अवधि के पश्चात भी विधि द्वारा अंग्रेजी भाषा के प्रयोग का उपबंध कर सकेगी। यह परन्तुक ऐसा बना कि हिन्दी आज तक उसके जाल में कैद है मन बहलाने के लिए अनुच्छेद 344 में हिन्दी के अधिकाधिक विकास एवं प्रयोग के लिए उपाय सुझाने हेतु एक राजभाषा आयोग का गठन करने की बात कह दी गई। आयोग तो बन गया लेकिन हिन्दी अभी भी अपने पूर्ववत स्थान पर यथावत खड़ी है। अब हम प्रान्तीय भाषाओं पर आते हैं। अनुच्छेद 345 में यह कहा गया है कि राज्य में प्रयोग की जाने वाली भाषा का निर्धारण स्वयं राज्य के विधान मण्डल कर सकेंगे। वे चाहें तो राज्य के कामकाज की भाषा उस राज्य में बोली जाने वाली किसी एक या अधिक भाषा या हिन्दी रख सकेंगे।
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