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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Mar 16th, 07:52 by rajni shrivatri


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कर्म बीज है। इस दृष्टि से हम जो भी है, अपने कर्मो का ही परिणाम है। अर्थात हमारे शुभाशुभ कर्मो द्वारा ही हमारा प्रारब्‍ध और भोग-भाग्‍य निर्धारित होते हैं, इसलिए हमारे द्वारा क्रियान्वित प्रत्‍येक कर्म परमार्थ से अभिप्रेरित हो। आध्‍यात्मिक पथिक अपने समस्‍त कार्यो को उत्‍साहपूर्वक संचालित करता है। प्रत्‍येक कार्य को परमात्‍मा की सेवा उपासना मानकर करना ही श्रेष्‍ठता, पूर्णता और जीवन की सिद्धि का रहस्‍य है। कर्म ही बीज की भांति जीवन में सुख-दु:ख की फसल उगाते है। मनसा, वाचा कर्मणा पवित्रता और स्‍वयं के प्रति जागरूकता नितांत अपेक्षित है। सचेत रहना एक स्थिर जीवन और एक स्‍वस्‍थ मन का आधार है। सचेत रहने का अर्थ है- सदैव जागरूकता की भावना बनाए रखना, जिसके द्वारा स्‍वयं के विचारों एवं कार्यो को देख रहे हों। हमारा चिंतन ऐसा होना चाहिए कि हम कभी भी दूसरों के मन को आहत करें। दरिद्र के प्रति दीन के प्रति, अभावाग्रस्‍त के प्रति संवेदनशील रहें, उनका सम्‍मान करें। इससे बड़ा विचार और क्‍या होगा कि हमारी संस्‍कृति ने दरिद्र को भी नारायण कहा है। जैसा बीज बोएंगे, फल वैसा ही आएगा। हम सब चाहते है कि हमें जीवन में केवल आनन्‍द ही प्राप्‍त हो, परन्‍तु सदा ऐसे कैसे हो सकता है। हम सब चाहते हैं कि जीवन में केवल परम सुख और शांति ही मिले, परन्‍तु ऐसा भी कहां होता है। हमारे चाहने में और कर्म में विरोध है। जो जस करहि, तस फल चाखा। कर्म हमारा बीज है। जो बोएंगे वही देर-सवेर काटेगे। बीज बोने में और फसल काटने में समय का अंतराल हो सकता है। हम भूल जाते है कि हमने क्‍या बोया था, परन्‍तु प्रकृति को और उसके नियमों को भुलने की आदत नहीं है। फल ही प्रमाण हैं कि हमने क्‍या बोया था। कर्म से ही हमारा बंधन है, कर्म से ही हमारी मुक्ति है।  
 
 
 
 
 
 

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