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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Mar 14th, 10:09 by rajni shrivatri
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संतान की परवरिश में माता-पिता दोनों का समान योगदान होता है। यदि व्यक्ति के सरकारी दस्तावेज में माता-पिता दोनों का ही नाम हों तो नारी सम्मान का भाव स्वत: ही पैदा हो जाता है। ऐसे में महाराष्ट्र सरकार की इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए जिसमें उसने सभी सरकारी दस्तावेजों में मां का नाम भी अनिवार्य रूप से लिखने का फैसला किया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह पहल न सिर्फ दूसरों के लिए अनुकरणीय होगी बल्कि महिलाओं का सामाजिक रूप से सम्मान बढ़ाने वाली भी होगी।
महाराष्ट्र सरकार ने पिछले दिनों महिला दिवस के मौके पर राज्य की नई महिला नीति घोषित की है। इस नीति में ही यह तय किया गया कि सरकारी दस्तावेज में अभिभावक के रूप में पिता के साथ-साथ माता का नाम लिखना भी अनिवार्य होगा। राज्य कैबिनेट ने भी इस पर मुहर लगा दी है। देखा जाए तो समय में बदलाव के साथ ही समाज में महिलाओं को लेकर सोच में भी बदलाव हुआ है। इस बदलाव के दौर में सरकारी स्तर पर ऐसे फैसले होते हैं तो महिला अधिकारों को और मजबूत करने करने की सोच बनती है। पिछले एक दशक के दौरान कई अदालती फैसलों में कहा गया है कि सरकारों को नियमों में बदलाव कर लोगों के आधिकारिक दस्तावेजों में अभिभावक के कॉलम में मां के नाम का उल्लेख करना चाहिए। इसके बावजूद अब भी कई प्रकरणों में बच्चों के सरकारी दस्तावेजों में माताओं का नाम दर्ज करना मुश्किल कार्य लगता है। हाल ही एक ऐसे ही मामले में यूजीसी के सर्कुलर के बावजूद दिल्ली की एक छात्रा के अभिभावक के रूप में मां नाम नहीं लिखा गया। इस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने छात्रा की डिग्री व प्रमाण पत्रों में पिता के साथ मां का नाम दर्ज करने का फैसला सुनाया। चिंता इसी बात की है कि रूढिवादी सोच के कारण देश में मां का जुड़वाना पहचान और बराबरी के लिए सदैव संघर्ष का हिस्सा रहा है। बेटा और वंश प्रवर्तक शब्द अब भी भारतीय समाज में अहम माने जाते हैं। हालत यह है कि किसी भी स्तर के आवेदन में सबसे पहले आवेदक से पिता का नाम ही पूछा जाता है। फिर मां की बारी आती है। अधिकांश में तो माता का जिक्र ही नहीं होता।
सवाल यही है महिलाएं हर क्षेत्र में आगे आ रही हैं तो उनके साथ दोहरा बर्ताव क्यों किया जा रहा है? इसमें कोई दोराय नहीं कि एक मां अपने बच्चे के लिए बहुत त्याग करती है। बड़े होने तक बच्चे की सार-संभाल करने में मां की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसे में बच्चे की पहचान भी माता-पिता दोनों के नाम से होनी चाहिए।
महाराष्ट्र सरकार ने पिछले दिनों महिला दिवस के मौके पर राज्य की नई महिला नीति घोषित की है। इस नीति में ही यह तय किया गया कि सरकारी दस्तावेज में अभिभावक के रूप में पिता के साथ-साथ माता का नाम लिखना भी अनिवार्य होगा। राज्य कैबिनेट ने भी इस पर मुहर लगा दी है। देखा जाए तो समय में बदलाव के साथ ही समाज में महिलाओं को लेकर सोच में भी बदलाव हुआ है। इस बदलाव के दौर में सरकारी स्तर पर ऐसे फैसले होते हैं तो महिला अधिकारों को और मजबूत करने करने की सोच बनती है। पिछले एक दशक के दौरान कई अदालती फैसलों में कहा गया है कि सरकारों को नियमों में बदलाव कर लोगों के आधिकारिक दस्तावेजों में अभिभावक के कॉलम में मां के नाम का उल्लेख करना चाहिए। इसके बावजूद अब भी कई प्रकरणों में बच्चों के सरकारी दस्तावेजों में माताओं का नाम दर्ज करना मुश्किल कार्य लगता है। हाल ही एक ऐसे ही मामले में यूजीसी के सर्कुलर के बावजूद दिल्ली की एक छात्रा के अभिभावक के रूप में मां नाम नहीं लिखा गया। इस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने छात्रा की डिग्री व प्रमाण पत्रों में पिता के साथ मां का नाम दर्ज करने का फैसला सुनाया। चिंता इसी बात की है कि रूढिवादी सोच के कारण देश में मां का जुड़वाना पहचान और बराबरी के लिए सदैव संघर्ष का हिस्सा रहा है। बेटा और वंश प्रवर्तक शब्द अब भी भारतीय समाज में अहम माने जाते हैं। हालत यह है कि किसी भी स्तर के आवेदन में सबसे पहले आवेदक से पिता का नाम ही पूछा जाता है। फिर मां की बारी आती है। अधिकांश में तो माता का जिक्र ही नहीं होता।
सवाल यही है महिलाएं हर क्षेत्र में आगे आ रही हैं तो उनके साथ दोहरा बर्ताव क्यों किया जा रहा है? इसमें कोई दोराय नहीं कि एक मां अपने बच्चे के लिए बहुत त्याग करती है। बड़े होने तक बच्चे की सार-संभाल करने में मां की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसे में बच्चे की पहचान भी माता-पिता दोनों के नाम से होनी चाहिए।
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