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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

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गर्मी का मौसम अभी ढंग से शुरू भी नहीं हुआ है कि आइटी शहर के नाम से पहचाने जाने वाला बेंगलूरू भीषण जल संकट की चपेट में गया है। इस शहर में पानी के लिए लंबी-लंबी कतारें शुरू हो गई है। मुख्‍यमंत्री निवास का बोरवेल भी सूख चुका है और वहां टैंकर के जरिए पेयजल आपूर्ति हो रही है। जैसे-जैसे गर्मी परवान चढ़ेगी, देश के तमाम शहर बेंगलूरू की तरह पेयजल संकट का शिकार होते जाएंगे। हर जेहन में सवाल उठना स्‍वाभाविक हैं कि आखिर भूजल का स्‍तर लगातार क्‍यों घटता जा रहा है। इस सवाल का जवाब भी शायद सब जानते हैं, लेकिन पानी बचाने में योगदान नहीं देते।  
यह तथ्‍य किसी से छिपा नहीं हैं कि पानी का उत्‍पादन नहीं हो सकताा, सिर्फ बरसात के पानी का सही संरक्षणा ही हमें पेयजल संकट से बचा सकता है। बेंगलूरू से चौदह सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मध्‍यप्रदेश के झाबुआ के स्‍थानीय लोगों ने प्राचीन परंपरा हलमा को पुनजीर्वित करते हुए इलाके में 108 तालाबों का निर्माण कर डाला। जो झाबुआ कभी पानी की किल्‍लत से परेशान रहता था, उसी इलाके में स्‍थानीय लोग एक वर्षाकाल में 1500 करोड़ लीटर पानी सहेज रहे है। समझने की बात यह है कि झाबुआ के लोगो ने पानी के मोल को सिर्फ समझा बल्कि उसके लिए प्रयास भी किए। ऐसे प्रयास बेगलूरू में क्‍यों नहीं हुए? बोरबोल खोदकर जमीन के पानी का दोहन करना कितनी समझदारी मानी जा सकती है। देश में वर्षा जल के संरक्षण की कई योजनाएं चल रही है। केन्‍द्र और राज्‍य सरकारें हर साल अरबों रूपए जल संरक्षण पर खर्च कर रही है। सरकारी आंकडो पर भरोसा कर लिया जाए तो देश में हर साल इतना पानी बचाया जा सकता है कि इसका संकट होना ही नहीं चाहिए। बड़े शहरों की गगनचुंबी इमारतों में जल संरक्षण के लिए जरूरी इंतजाम करने की बाध्‍यता है, लेकिन ईमानदारी से पडताल की जाए तो वहां भी पोल ही निकलेगी।   

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