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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Feb 21st, 09:31 by lucky shrivatri


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आबादी के अनुपात में हमारे देश में उपलब्‍ध स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं को देखें तो अभी काफी काम करना बाकी है। तमाम सरकारी दावों के बावजूद आम आदमी को सस्‍ता सुलभ उपचार उपलब्‍ध कराने के सरकारी दावे हकीकत से कोसों दूर नजर आते है। यह अच्‍छी बात हैं कि देश में सेहत के प्रति जागरूकता बढ़ रही है। मुश्किल यह है कि चिकित्‍सा भी लगातार महंगी होती जा रही है। मुफ्त इलाज की सरकारी योजनाओं के बावजूद हालत यह है कि लोगों को सवास्‍थ्‍य के लिए बड़ी रकम खर्च करनी पड़ रही है। बैक में बचत भारतीय परिवारों की पूंजी बाजारों की तरफ शिफ्ट होने की एक वजह यह भी है।  
एक ताजा रिपोर्ट में शामिल तथ्‍यों के अनुसार स्‍वास्‍थ्‍य बीमा लेने वालों में भी सिर्फ तीस फीसदी का मकसद आयकर में छूट हासिल करना होता है। सत्तर फीसदी लोग स्‍वास्‍थ्‍य बीमा महंगे होते उपचार से डरकर कराते हैं ताकि जरूरत पड़ने पर कैशलेस उपचार की सुविधा मिल सके। यह आंकड़ा बताता हैं कि सरकारी स्‍तर पर नि:शुल्‍क अथवा नाम मात्र के प्रीमियम पर कराई जाने वाली स्‍वास्‍थ्‍य बीमा पॉलिसी भी लोगों को इस बात की गारंटी नही दे पा रही कि वक्‍त जरूरत उनका कैशलेस उपचार हो सकेगा। इसमें संदेह नहीं है कि केन्‍द्र राज्‍यों के स्‍तर पर शुरू की गई स्‍वास्‍थ्‍य बीमा योजनाओं से लोगों को उपचार में थोड़ी राहत मिली है। लेकिन इन योजनाओं के तहत मरीजों को कितनी और कैसी राहत मिल पाती है, यह किसी से छिपी नहीं। सरकारी स्‍वास्‍थ्‍य बीमा योजनाओं में इतने अवरोधक लगे होते हैं कि गंभीर बीमारी को तो छोड़े, छोटी-मोटी बीमारी पर अस्‍पतालों में उपचार कराने वालों को पुनर्भरण के लिए चक्‍कर लगाने को मजबूर होना पड़ता है। महंगे निजी अस्‍पतालों के अपने कानून कायदे होते है। अधिकांश निजी अस्‍पतालों में स्‍वास्‍थ्‍य बीमा के उन्‍हीं मामलों को तरजीह दी जाती है जहां महंगा प्रीमियम देकर लोग खुद का परिवार का स्‍वास्‍थ्‍य बीमा कराते है। स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति लोग जागरूक हो, इसी इरादे से स्‍वास्‍थ्‍य बीमा कराने वालों को ऐसे निवेश पर आयकर छूट का प्रावधान किया गया था। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि स्‍वास्‍थ्‍य बीमा कराकर आयकर छूट चाहने वाले लोग कम ही है।  
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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