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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Feb 12th, 09:34 by lucky shrivatri
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कैसर के इलाज के लिए स्वदेशी तकनीक से विकसित सीएआर-टी सेल थेरेपी भारत ही नहीं, दुनिया के तमाम ऐसे देशों के मरीजों के लिए उम्मीद की नई किरण बनकर आई है, जो आर्थिक असमर्थता के कारण उपचार नहीं करा पाते थे। इस थेरेपी से एक रिटायर्ड कर्नल डॉक्टर वीके गुप्ता का सफलतापूर्वक इलाज करने का दावा किया गया है। दशकों से कैसर रोगियों का इलाज कीमोथेरपी, रेडिएशन और सर्जरी पर निर्भर रहा है। लगातार हो रहे अनुसंधानों के कारण इन प्रारंभिक पद्धतियों से इलाज में भी लगातार तरक्की हो रही है और अब पहले की तुलना में कई प्रकार के कैसर से पूरी तरह मुक्ति मिलने लगी है। हालांकि पुराना मरीजों के लिए काफी कष्टकारी माना जाता है और इसके दूरगामी साइड इफेक्ट होते है। लेकिन सीएआर सेल थेरेपी एक पद्धाति है जो कैसर की बीमारी की रोकथाम में नई आशा है। ल्यूकेमिया और लिम्फोमा जैसे कैंसर में यह विशेष रूप से कारगर है।
कैसर के इलाज के संबंध में ज्यादातर शोध पश्चिमी देशों में हुए है। अब सीएआर टी सेल थेरेपी का विकास करने के बाद भारत भी उन विशेष देशों के क्लब में शामिल हो गया है। इस पद्धति का विकास टाटा मेमोरियल अस्पताल ने किया है। सीआर टी सेल थेरेपी में रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए जिम्मेदार टी कोशिकाओं को निकालकर उन्हें फिर से व्यवस्थित किया जाता है। इसके लिए जीन एडिटिग के माध्यम से टी कोशिकाओं को कैसर के खिलाफ तैयार करके फिर से रोगी के शरीर में डाला जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली को इस तरह मजबूत किया जाता है कि यह कैसर के जीवाणुओं का सफाया कर सके। हालांकि अभी यह नहीं कहा जा सकता कि मरीज हमेशा के लिए ठीक हो गया। लेकिन माना जा रहा है कि इस इलाज के बाद बीमारी की पुनरावृत्ति की आशंका कम है।
कैसर के इलाज के संबंध में ज्यादातर शोध पश्चिमी देशों में हुए है। अब सीएआर टी सेल थेरेपी का विकास करने के बाद भारत भी उन विशेष देशों के क्लब में शामिल हो गया है। इस पद्धति का विकास टाटा मेमोरियल अस्पताल ने किया है। सीआर टी सेल थेरेपी में रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए जिम्मेदार टी कोशिकाओं को निकालकर उन्हें फिर से व्यवस्थित किया जाता है। इसके लिए जीन एडिटिग के माध्यम से टी कोशिकाओं को कैसर के खिलाफ तैयार करके फिर से रोगी के शरीर में डाला जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली को इस तरह मजबूत किया जाता है कि यह कैसर के जीवाणुओं का सफाया कर सके। हालांकि अभी यह नहीं कहा जा सकता कि मरीज हमेशा के लिए ठीक हो गया। लेकिन माना जा रहा है कि इस इलाज के बाद बीमारी की पुनरावृत्ति की आशंका कम है।
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