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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤MPHC-Junior Judicial Assistant Re-Exam-2023✤|•༻
created Dec 5th 2023, 12:17 by Buddha Typing
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न्यायिक पृथक्करण एक कानूनी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कानूनी रूप से विवाहित होने के बावजूद एक विवाहित जोडे को औपचारिक रूप से अलग कर दिया जाता है। यह अक्सर ज्ञात है कि बिस्तर और बोर्ड से तलाक है। अलगाव को अदालत के आदेश के रूप में प्रदान किया जाता है। हालांकि, ध्यान दें कि किसी भी कारण से अलगाव नहीं किया जाता है। युगल के मतभेद अपरिवर्तनीय हैं या व्यभिचार का संदेह है। न्यायिक पृथक्करण के आधार हैं। धारा 13-ए, के अनुसार यदि तलाक के लिये प्रार्थना पत्र पेश किया गया है और न्यायालय मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह उचित समझता है कि तलाक के स्थान पर न्यायिक पृथक्करण ही उचित है तो वह न्यायिक पृथक्करण की डिक्री प्रदान करेगा। न्यायिक पृथक्करण का अर्थ है सक्षम क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय द्वारा पति-पत्नि के साथ-साथ रहने के अधिकार को समाप्त करना। परन्तु ऐसी डिक्री या आदेश न पक्षकारों की हैसियत को प्रभावित करती है और न ही विवाह बन्धन को तोडती है। यह ऐसा सम्बन्ध विच्छेद है जो पति या पत्नी को एक दूसरे से अलग रहने के लिए प्राधिकृत करता है। जहां न्यायिक पृथक्करण की डिक्री पारित हो गई है वहां पक्षकारों का यह कर्तव्य नहीं होगा कि वे एक दूसरे के साथ सहवास करें। न्यायिक पृथक्करण विवाह के पक्षकारों को समझौता करने और पुनर्मिलन का अवसर प्रदान करता है। यदि समझौता हो जाता है तो उनके अधिकार एवं कर्तव्य पुन: जीवित हो जाते हैं। इसके लिए यह आवश्यक नहीं कि वे इस हेतु न्यायालय में आवेदन करें न्यायिक पृथक्करण की डिक्री पक्षकारों के पुनर्मिलन की तिथि से निष्प्रभावी हो जाती है।
यदि उक्त मिलन डिक्री पारित होने की तिथि से एक वर्ष या अधिक समय तक नहीं होता है तो यह विवाह विच्छेद का आधार बन जाता है। इस अधिनियम के लागू होने के पहले सम्पन्न हुए विवाह की दशा में इस अधिनियम को लागू किया।
यदि उक्त मिलन डिक्री पारित होने की तिथि से एक वर्ष या अधिक समय तक नहीं होता है तो यह विवाह विच्छेद का आधार बन जाता है। इस अधिनियम के लागू होने के पहले सम्पन्न हुए विवाह की दशा में इस अधिनियम को लागू किया।
