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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Dec 5th 2023, 09:37 by lucky shrivatri
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चार राज्यों के विधानसभ चुनावों के नतीजों ने विभिन्न एग्जिट पोल की पोल खोलकर रख दी है। ज्यादातर चैनल्स/एजेसियों के एग्जिट पोल में राजस्थान और मध्यप्रदेश में भाजपा-कांग्रेस के बीच काटे की टक्कर बताई जा रही थी तो छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का पलड़ा भारी बताया जा रहा था। तेलंगाना को छोड़ बाकी तीनों राज्यों में एग्जिट पोल के अनुमान गलब साबित हुए और कोई भी एजेंसी चुनावी अंतर्धारा को नहीं भांप सकी। एक बार फिर साबित हो गया कि भारतीय मतदाताओं के मन की थाह लेने वाला कोई यंत्र या तंत्र विकसित नहीं हुआ है। एग्जिट पोल तीर कम, तुक्का ज्यादा साबित हुए है। इन पर आंखे मूंदकर भरोसा नहीं किया जा सकता।
अमरीका में 1936 के राष्ट्रपति चुनाव में दुनिया का पहला एग्जिट पोल हुआ था और सटीक रहा था। भारत में 1996 में एग्जिट पोल की शुरूआत हुई। सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डवलपिंग सोसायटीज के इस एग्जिट पोल में भाजपा को लोकसभा चुनाव में बहुत मिलने का अनुमान जताया गया था। यह अनुमान सटीक रहा क्योंकि सीएसडीएस की टीम ने वोट देकर निकले मतदाताओं की राय जुटाने के अलावा उन पहलुओं के गुणा-भाग पर भी खासी मशक्कत की थी, जिनसे चुनावों में हार-जीत निर्धारित होती है। आज यह प्रणाली जमीनी हकीकत से मानो कट चुकी है। बाद की भेड़चाल में गड़बड यह हुई कि एजेसियों ने गिनती के मतदाताओं की राय जुटाने के अलावा वोट प्रतिशत को भी एग्जिट पोल में विश्लेषण का मुख्य आधार मान लिया। ऐसा कोई विज्ञान या गणित नहीं है, जो वोट प्रतिशत को सीट में बदलने का फॉर्मूला देता हो। कम वोट प्रतिशत वाली पार्टी को ज्यादा सीटें मिल सकती है और ज्यादा वोट प्रतिशत वाली पार्टी कम सीटों पर सिमट सकती है, यह कई बार देखा जा चुका है।
अफसोस की बात यह है कि एग्जिट पोल को राष्ट्रीय मीडिया जरूरत से ज्यादा प्राथमिकता देता है, जबकि क्षेत्रीय मीडिया इनके कवरेज में सजगता और संयम दिखाता है। लोगों को भ्रम में डालने वाले एग्जिट पोल के कवरेज में नेशनल मीडिया को भी जागरूक होना चाहिए।
अमरीका में 1936 के राष्ट्रपति चुनाव में दुनिया का पहला एग्जिट पोल हुआ था और सटीक रहा था। भारत में 1996 में एग्जिट पोल की शुरूआत हुई। सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डवलपिंग सोसायटीज के इस एग्जिट पोल में भाजपा को लोकसभा चुनाव में बहुत मिलने का अनुमान जताया गया था। यह अनुमान सटीक रहा क्योंकि सीएसडीएस की टीम ने वोट देकर निकले मतदाताओं की राय जुटाने के अलावा उन पहलुओं के गुणा-भाग पर भी खासी मशक्कत की थी, जिनसे चुनावों में हार-जीत निर्धारित होती है। आज यह प्रणाली जमीनी हकीकत से मानो कट चुकी है। बाद की भेड़चाल में गड़बड यह हुई कि एजेसियों ने गिनती के मतदाताओं की राय जुटाने के अलावा वोट प्रतिशत को भी एग्जिट पोल में विश्लेषण का मुख्य आधार मान लिया। ऐसा कोई विज्ञान या गणित नहीं है, जो वोट प्रतिशत को सीट में बदलने का फॉर्मूला देता हो। कम वोट प्रतिशत वाली पार्टी को ज्यादा सीटें मिल सकती है और ज्यादा वोट प्रतिशत वाली पार्टी कम सीटों पर सिमट सकती है, यह कई बार देखा जा चुका है।
अफसोस की बात यह है कि एग्जिट पोल को राष्ट्रीय मीडिया जरूरत से ज्यादा प्राथमिकता देता है, जबकि क्षेत्रीय मीडिया इनके कवरेज में सजगता और संयम दिखाता है। लोगों को भ्रम में डालने वाले एग्जिट पोल के कवरेज में नेशनल मीडिया को भी जागरूक होना चाहिए।
