Text Practice Mode
__ *AAK INSTITUTE OF COMPUTER TYPING * __FOR HINDI AND ENGLISH,__ TIKAMGARH M.P.__FOR CPCT,MANY MORE EXAM
created Apr 15th 2023, 06:16 by LAAK
0
618 words
4 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
00:00
विचारवान मनुष्य ही सनातन समय से अपने जीवन में आई सारी चुनौतियों का सामना करना सीख पाया है। आज के काल में मनुष्य सभ्यता में यांत्रिक समाधान का एक विचार नए स्वरूप में उभरा है। मनुष्य की मदद हेतु या मनुष्य की शक्ति के विस्तार हेतु यंत्रों से मदद लेने का लंबा सिलसिला मनुष्य सभ्यता में निरंतर चलता रहा है पर अब यांत्रिक सभ्यता का विस्तार इस गति से मनुष्य के जीवन में रच-बस रहा है कि मनुष्य खुद ही यांत्रिक सभ्यता का एक अंश हो गया है। मानवीय संवेदनाओं की बुनियाद पर खड़ी सनातन सभ्यता में जड़वत यांत्रिक सभ्यता जिस रूप में मनुष्यों में जो घुसपैठ करती जा रही है, वह एक बड़ी चुनौती है जिसका समाधान आज के काल के मनुष्यों को विचार और प्रचार के मूल स्वरूप में खोजना होगा।
प्रचार मनुष्य के विचार को प्रचार से प्रभावित कर अंधानुकरण की दिशा में ले जाता है जबकि विचार मनुष्यों को सनातन काल से स्वतंत्रचेता स्वरूप में ही बने रहने की स्वतंत्र ऊर्जा निरंतर प्रदान करते हैं। विचार का सनातन प्रवाह और मशीन से विचार का प्रायोजित संचार- ये आज के काल का सर्वथा नया आयाम है। एक जड़ यंत्र किस बड़े स्वरूप में बिना एक-दूसरे से आपस में मिले ही एक-दूसरे को किस हद तक अशांत या समृद्धशाली कर सकता है, यह आज के काल का नया दृश्य है, जो समूची मानव सभ्यता के सामने आ खड़ा हुआ है। सनातन रूप से स्वतंत्र विचार की जगह संकुचित और प्रायोजित प्रचार तंत्र ने कुछ मनुष्यों में एक नए भ्रम को जन्म दिया है।
आज का मनुष्य विचार से कम और प्रचार से जल्दी प्रभावित हो जाता है, यह भ्रम आज फैलने लगा है। आज सशरीर या प्रत्यक्ष रूप से विचार-विनिमय के बजाय यांत्रिक उपकरण या तकनीक द्वारा विचार का संचार कर मनुष्य को प्रभावित करने के नाते नए-नए उपकरण मनुष्य को सुलभता से उपलब्ध होते जा रहे हैं। हमारी धरती में जहां मनुष्य नहीं है, वहां प्राकृतिक रूप से शांति है। किसी किसम का कोलाहल नहीं मिलता। एकदम नीरवता हर कहीं व्यापत होती है। आनंददायक अनुभव से मुलाकात होती है और हम आंतरिक और बाह्मा शांति में डूब जाते हैं। हर मनुष्य में अपनी चेतना का भाव मूलत: मिलता है, पर हम सब अपनी चेतना को अन्य समकालीन जीवों की चेतना से एकाकार नहीं कर पाते, इसी से मन में असंतोष या अशांति का भाव पैदा होता है और हम सब शांति की खोज यात्रा के आजीवन यात्री हो जाते हैं।
धरती से आकाश तक जो हवा, पानी और प्रकाश का विस्तार है, वह सब हमारे अंदर भी उसी रूप में मौजूद है। तीनों कभी किसी से भेद नहीं करते, तीनों की अनंत और सनातन ऊर्जा है। तीनों का अपना-अपना पर सम्मिलत सनातन धर्म है। तीनों ने मिलकर सनातन समय से जीवन को निरंतर जीवन चक्र दिया। विचार और शांति दोनों ही निराकार हैं। अशांत स्थिति सनातन न होकर किसी तात्कालिक अवरोध, लोभ-लालच और चाहना के वशीभूत अविवेकी मन की क्षणिक हलचल है।
प्रचार मनुष्य के विचार को प्रचार से प्रभावित कर अंधानुकरण की दिशा में ले जाता है जबकि विचार मनुष्यों को सनातन काल से स्वतंत्रचेता स्वरूप में ही बने रहने की स्वतंत्र ऊर्जा निरंतर प्रदान करते हैं। विचार का सनातन प्रवाह और मशीन से विचार का प्रायोजित संचार- ये आज के काल का सर्वथा नया आयाम है। एक जड़ यंत्र किस बड़े स्वरूप में बिना एक-दूसरे से आपस में मिले ही एक-दूसरे को किस हद तक अशांत या समृद्धशाली कर सकता है, यह आज के काल का नया दृश्य है, जो समूची मानव सभ्यता के सामने आ खड़ा हुआ है। सनातन रूप से स्वतंत्र विचार की जगह संकुचित और प्रायोजित प्रचार तंत्र ने कुछ मनुष्यों में एक नए भ्रम को जन्म दिया है।
आज का मनुष्य विचार से कम और प्रचार से जल्दी प्रभावित हो जाता है, यह भ्रम आज फैलने लगा है। आज सशरीर या प्रत्यक्ष रूप से विचार-विनिमय के बजाय यांत्रिक उपकरण या तकनीक द्वारा विचार का संचार कर मनुष्य को प्रभावित करने के नाते नए-नए उपकरण मनुष्य को सुलभता से उपलब्ध होते जा रहे हैं। हमारी धरती में जहां मनुष्य नहीं है, वहां प्राकृतिक रूप से शांति है। किसी किसम का कोलाहल नहीं मिलता। एकदम नीरवता हर कहीं व्यापत होती है। आनंददायक अनुभव से मुलाकात होती है और हम आंतरिक और बाह्मा शांति में डूब जाते हैं। हर मनुष्य में अपनी चेतना का भाव मूलत: मिलता है, पर हम सब अपनी चेतना को अन्य समकालीन जीवों की चेतना से एकाकार नहीं कर पाते, इसी से मन में असंतोष या अशांति का भाव पैदा होता है और हम सब शांति की खोज यात्रा के आजीवन यात्री हो जाते हैं।
धरती से आकाश तक जो हवा, पानी और प्रकाश का विस्तार है, वह सब हमारे अंदर भी उसी रूप में मौजूद है। तीनों कभी किसी से भेद नहीं करते, तीनों की अनंत और सनातन ऊर्जा है। तीनों का अपना-अपना पर सम्मिलत सनातन धर्म है। तीनों ने मिलकर सनातन समय से जीवन को निरंतर जीवन चक्र दिया। विचार और शांति दोनों ही निराकार हैं। अशांत स्थिति सनातन न होकर किसी तात्कालिक अवरोध, लोभ-लालच और चाहना के वशीभूत अविवेकी मन की क्षणिक हलचल है।
saving score / loading statistics ...