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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Mar 11th 2023, 04:12 by lovelesh shrivatri


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भारत के संपूर्ण चिकित्‍सकीय परिदृश्‍य में पिछले कुछ समय से काफी सकारात्‍मक परिवर्तन आए हैं। इन परिवर्तनों का असर भी धरातल पर धीरे-धीरे ही सही पर प्रगाढ़ रूप में नजर रहा हैं। इन्‍हीं में से एक परिवर्तन यह है कि देश के मरीज इलाज के लिए विदेश जाने को अब पहले जितने मजबूर नहीं हैं। देश से हर साल लगभग एक करोड़ चालीस लाख  लोगों  को बेहतर इलाज के लिए किसी विकसित देश का रुख करना पड़ता हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक मेडिकल वेबिनार में इस पहलू को गंभीरता से रेखाकिंत किया कि भारत इस मजबूरी को न्‍यूनतम स्‍तर पर लाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं। नि:संदेह इन प्रयासों का असर ही है कि हमारे कई बड़े शहरों में हर तरह के उपचार की सुविधा सुलभ हो गई हैं। चिकित्‍सकीय स्‍तर पर भी और आधारभूत सुविधाओं के पहलू से भी सुविधा-संपन्‍न होने के साथ ही मरीजों में यह भरोसा भी जगा है कि देश में ही बिना जोखिम के इलाज करवाया जा सकता हैं। यह विश्‍वास सिर्फ भारत के मरीजों में जगा है, बल्कि सात समंदर पार तक भी इसकी तरंगें पहुंची हैं। यही वजह है कि देश में मेडिकल पर्यटन भी लगातार प्रगति के सोपान चढ़ रहा हैं। विदेशों में मरीजों को समझ रहा है कि भारत में इलाज करवाना जान का जोखिम नहीं है, उन्‍हें समुचित कारगर उपचार मिलेगा वह भी उनके खुद के आसपास के किसी अन्‍य विकसित देश की तुलना में काफी कम कीमत पर। अभी यह आंकड़ा आठ लाख प्रति वर्ष का है, जो समय के साथ नि:संदेह बढ़ेगा। लेकिन यह देश की चिकित्‍सकीय व्‍यवस्‍था का एक पहलू हैं, जो बड़े   और बहुत बड़े शहरों को इंगित करता हैं। देश में छोटे शहर भी हैं, उनके कस्‍बे और दूरदराज के ग्रामीण इलाके भी हैं, जहां रहने वाले लोग इतने खुशकिस्‍मत नहीं कि छोटे-मोटे इलाज की भी समुचित सुविधा मिल जाए। वहां आधारभूत ढांचा, डॉक्‍टर्स और सुविधाएं नहीं हैं। छोटे-छोटे परीक्षण तक के लिए बड़े शहर की ओर दौड़ लगाने की मजबूरी उनकी  बाशिंदों की किस्‍मत में लिखी हुई हैं। गांवों, कस्‍बों और छोटे शहरों से मरीजों का बड़े शहरों में आने का सिलसिला कुछ थमें, ऐसे उपायों पर पूरी गंभीरता के साथ काम करने की जरूरत हैं। उदाहरण के तौर पर, पिछले कुछ वर्षों के दौरान देश में 260 नए मेडिकल कॉलेज खुले हैं लेकिन अधिकांश में प्राध्‍यापकों की पूरी व्‍यवस्‍था नहीं की जा सकी है। इन कॉलेजों में अनौपचारिक तौर पर ही प्राध्‍यापकों की व्‍यवस्‍था की जा रही हैं। ऐसा ही  हाल ग्रामीण इलाकों के स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों का है, जो चिकित्‍सकों के लिए तरस रहे हैं। व्‍यापक कदम उठाकर ही ये कमियां दूर की जा सकती हैं।  

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