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बंसोड कम्प्यूटर टायपिंग इन्स्टीट्यूट मेन रोड गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0)
created Mar 10th 2023, 06:08 by Sawan Ivnati
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अमेरिका में राजदूत रह चुकीं डॉ मलीहा लोधी का मानना है कि अनिश्चितता की मौजूदा स्थिति में पाकिस्तान के लिए महत्वपूर्ण यह है कि वहां के हालात स्थिर हों और अमन कायम हो। सरकार को वहां की उभरती स्थिति पर कम और एक स्वर में बोलना चाहिए। जश्न मनाने, तालिबान का प्रवक्ता बनने या अतीत के प्रति जुनूनी होने की कोई वजह नहीं है। हमें वहां के भविष्य को लेकर चिंता होनी चाहिए कि क्या दशकों की जंग, संघर्ष और विदेशी हस्तक्षेप के बाद अफगानिस्तान में शांति लौट पाएगी। अफगानिस्तान में जो कुछ भी होता है, उसका सबसे अधिक असर पाकिस्तान पर पड़ता है। अफगानिस्तान के भीतर तोर्खम और चमन सीमा से आने-जाने वाले ट्रकों से व्यापार हो रहा है। पर दोनों तरफ सैकड़ों ट्रक खड़े हैं। इसकी वजह यह है कि अधिकारी बहुत सख्त हो गए हैं और वे यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि ड्राइवरों के पास उचित दस्तावेज हों और उनकी आड़ में शरणार्थी पाकिस्तान में दाखिल न हो रहे हों। पाकिस्तान ने पहले ही कह दिया है कि उसने शरणार्थियों को न आने देने के लिए सभी उपाय किए हैं, क्योंकि वहां पहले से ही करीब तीन लाख शरणार्थी हैं। बलूचिस्तान से मानव तस्करी की कई खबरें भी आई हैं। दो दशक पहले तालिबान को मान्यता देने वालों में सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के साथ पाकिस्तान था, लेकिन इस बार ये तीनों ही देश तालिबान को मान्यता देने की जल्दबाजी में नहीं हैं। पाकिस्तान ने तालिबान से स्प्ष्ट कहा है कि इस बार वे एक क्षेत्रीय समझदारी बनाने की कोशिश करें, ताकि अफगानिस्तान के सभी निकट पड़ोसी सामूहिक रूप से उन्हें मान्यता दे सकें। इससे तालिबान पर दबाव बना हुआ है, लेकिन जब मैंने पंजाब प्रांत के विभिन्न समुदायों के लोगों से बात की, तो पता चला कि उनमें से ज्यादातर की अफगानिस्तान में कोई दिलचस्पी नहीं है और कई को तो यह भी नहीं मालूम कि चारों तरफ से घिरे उस देश में क्या हुआ है। इसको लेकर सबसे ज्यादा दिलचस्पी और जागरूकता खैबर पख्तुनख्वा में है, जहां अफगानिस्तान के घटनाक्रम का सीधा असर होता है। पर वहां के ज्यादातर लोगों की इस मामले में वैसी दिलचस्पी नहीं है, जैसी सोवियत संघ के अफगानिस्तान से चले जाने के वक्त थी। इस मुश्किल वक्त में अफगानों के प्रति उनके मन में सहानुभूति है, लेकिन वे और शरणार्थियों के स्वागत के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि संसाधन सीमित हैं। बहरहाल क्या किसी ने काबुल हवाई अड्डे पर अफगानी महिलाओं, पुरुषों और बच्चों को देखा है, जो मुल्क छोड़ने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं दुनिया भर का मीडिया अफगानिस्तान के बाकी हिस्सों को भूल गया है और केवल हवाई अड्डे पर ध्यान केंद्रित किए हुए है, क्योंकि अफगान छोड़ने वाले ज्यादातर अमेरिकी और यूरोपीय हैं, जिनमें बड़ी संख्या में अफगान भी हैं। सैकड़ों तस्वीरों में दिखाया गया है कि अफगान बहुत अमीर नहीं हैं और उनके पास सिर्फ एक थैला है। ज्यादातर अफगानी नंगे पैर हैं, जो अपने वतन की धूल और मिट्टी अपने पैरों तले ढो रहे हैं।
