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बंसोड टायपिंग इन्‍स्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 मो0 नं0 8982805777

created Feb 6th 2023, 02:00 by Ashu Soni


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प्रस्‍तुत मामले में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा तीसरी दलील यह दी गई कि बंदूक की बरामदगी, जिससे अपीलार्थी ने जनसमूह पर गोलियां चलाई थीं के संबंध में यह साबित नहीं किया गया है कि वह अपीलार्थी से ही बरामद की गई थी। अधिवक्‍ता द्वारा यह भी दलील दी गई है कि बरामदगी से संबंधित साक्षियों में से एक साक्षी ने यह अभिसाक्ष्‍य दिया है कि जो बंदूक अभियुक्‍त के कहने पर बरामद की गई थी वह उस समय कागज में लिपटी हुई पाई गई थी तब उसे खोदकर निकाला गया था, बरामदगी से संबंधित अन्‍य साक्षियों ने इससे विभिन्‍न साक्ष्‍य दिया है ऐसा कि इसके ऊपर देखा गया है सबसे पहले यह अभिवाक् तब किया जा सकता था जब अपीलार्थी ने इनकार किया होता और उसका यह कथन होता कि उसने घटना के समय गोली चलाई ही नहीं थी। क्‍योंकि उसने ऐसा अभिवाक् नहीं दिया है, इसलिए वर्तमान दलील बिल्‍कुल भी स्‍वीकार्य नहीं है। दूसरी बात भी यह है कि बरामदगी का तथ्‍य अभियोजन साक्षी एक और अभियोजन साक्षी दो के कथनों से अभियोजन पक्ष द्वारा साबित किया गया है। जहां तक की अभियुक्‍त अपीलार्थी के हस्‍ताक्षर बरामदगी के समय तैयार किए गए ज्ञापन पर प्राप्‍त किए गए थे। ऐसी स्थिति में इस बात से किसी भी प्रकार से कोई गुंजाइश नहीं है कि अपीलार्थी के कहने पर बरामद की गई बंदूक खोदकर निकाले जाने के समय पर कागज में लिपटी हुई थी या नहीं। ऊपर अभिलिखित कारणों से हमें इस दलील में कोई सार नहीं दिखाई देता है। अ‍पीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा चौ दलील यह दी गई है कि सह-अभियुक्‍त को, जिसका विचारण अलग से किया गया था, दोषमुक्‍त कर दिया गया। इस संबंध में विद्वान अधिवक्‍ता का झुकाव इस और था कि अपीलार्थी के अलग से किए गए विचारण में अभियोजन पक्ष द्वारा जिन साक्षियों का अवलंब किया गया था उन्‍हीं साक्षियों ने सह-अभियुक्‍त के संबंध में किए गए विचारण के दौरान अभिसाक्ष्‍य दिया था।  
अत: प्रस्‍तुत मामले में साक्ष्‍य के उपरोक्‍त मूल्‍यांकन के आधार पर अधीनस्‍थ न्‍यायालय द्वारा पारित दोषसिद्धि स्थिर रखे जाने योग्‍य नहीं है। संदेह कितना भी सुदृढ़ क्‍यों हो वह दोषसिद्धि का आधार  नहीं हो सकता। अत: न्‍यायालय द्वारा पारित दोषसिद्धि एवं दंडादेश को अपास्‍त किया जाकर अपील स्‍वीकार की जाती है।

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