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created Nov 30th 2022, 05:09 by Shreebageshwar Academy
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हाल ही के दिनों में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित अभिनंदन समारोह में मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड ने कहा, हमें सबसे पहले जिला न्यापालिका का चेहरा बदलना हेगा। हमने अधीनता की संस्कृति को बढ़ावा दिया है। उन्होंने कहा कि कई बार जब जिला न्यायधीश को बैठकों के लिए बुलाया जाता है, तो ते उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के सामने बैठक की हमम्मत नहीं करते हैा। ऐसे उदाहरण भी हैं, जब मुख्य न्यायाधीश यात्रा करते हुए उन जिलों को पार करते हैा तो न्यायिक अधिकारी जिलों की सीमाओं पर एक पंक्ति में खड़े होते हैा। ये उदाहरण औपनिवेशिक मानसिकता दर्शाते हैं। हमें इसे बदलना होगा। जस्टिस चंद्रचूड की यह चिंता मानों सभी से सवाल कर रही है। क्या प्रोफाइल वैल्यू, ह्ममन वैल्यू से बड़ी होती है मनुष्य ने समाज का निर्माण किया, लेकिन इतने विभेद खड़े कर दिए कि समान महसूस करने का भाव धुंधला-सा पड़ने लगा है। हम अलग हैं, यह हम अपनी सुविधा से मान लेते हैं, लेकिन हम सब तो एक ही हैं। फिर इस सत्य को कुर्सी या पद से इतने विभेद कब समाना क्यों करना चा रहा है महाभारत में महर्षि भृगु महर्षि भारतद्वाज से जात-पांत को लेकर पूछते हैं तो भारद्वाज कहते हैं आपके अनुसार हम सब जाति से एक-दसूरे से अलग हैं लेकिन इच्छा को्रध, दूख, भूख, भय, चिंता तो सभी को समान को रूप से प्रभावित करते हैं। फिर हम लेकिन इच्छा, अलग कैसे हैं पद पाना और उस पद को अपनी जिम्मेदारी और मानवीयता से विशिष्ट बनाना ही कर्तव्य है। पर बॉस-सबोर्डिनेट द्वैत ऊंच-चीन के भाव को बनाकर रखना चाहता है। ऐसा क्यों है हमारे मुल्क को स्वतंत्र हुए तो कई दशक हो गए। फिर कोई आपने पद से इतना बड़ा कैसे हो सकता है कि उसे दूसरे छोटे नजर आते हों तमाम संस्थाओं में यह देखा जा सकता है। कोई किसी से पद में बड़ा है तो यह भी मान लिया जाता हे कि वह अपने सबोर्डिनेट से ज्यादा जानता भी है, और समझता भी है। स्टीफन ने च्वांगत्स के शब्दों पर अपनी टिप्पणी में कहा था, कुछ ला्गों के पास एटलस कॉम्प्लेक्स होता है, मानो वे दुनिया को कंधों पर ढोते है।
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