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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Nov 24th 2022, 04:05 by lovelesh shrivatri
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यदि कोई न्यायालय जिसने किसी व्यक्ति को उपधारा 1 या उपधारा 2 के अधीन जमानत पर छोड़ा है, ऐसा करना आवश्यक समझता है तो ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने का निर्देश दे सकता है और उसे अभिरक्षा के लिए सुपुर्द कर सकता है। यदि मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय किसी मामले में ऐसे व्यक्ति का विचारण, जो किसी अजमानतीय अपराध का अभियुक्त है, उस मामले में साक्ष्य लेने के लिए नियत प्रथम तारीख से 60 दिन की अवधि के अंदर पूरा नहीं हो जाता है तो यदि ऐसा व्यक्ति उक्त संपूर्ण अवधि के दौरान अभिरक्षा में रहा है तो जब तक ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे, मजिस्ट्रेट अन्यथा निदेश न दे वह मजिस्ट्रेट को जमानत पर छोड़ दिया जाएगा। यदि अजमानतीय अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के विचारण को समाप्त हो जाने के पश्चात् और निर्णय दिए जाने के पूर्व किसी समय न्यायालय की यह राय है कि यह विश्वास करने के उचित आधार हैं कि अभियुक्त किसी ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और अभियुक्त अभिरक्षा में है, तो वह अभियुक्त को निर्णय सुनाने के लिए अपने हाजिर होने के लिए प्रतिभुओं रहित बंधनपत्र उसके द्वारा निष्पादित किए जाने पर छोड़ देगा। इस धारा में अजमानतीय अपराध की दशा में जमानत जारी करने संबंधी उपबंधों का उल्लेख है। इस धारा की उपधारा(1) के अनुसार जब अजमानतीय अपराध के अभियोगी व्यक्ति को पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा बिना वारंट गिरफ्तार करके सेशन न्यायालय या उच्च न्यायालय से भिन्न किसी न्यायालय के समक्ष लाया जाता है या वह स्वयं हाजिर होता है, तो उसे जमानत पर छोड़ा जा सकता है। परंतु इसके दो अपवाद हैं, जब उसे जमानत पर नहीं छोड़ा जाएगा यदि ऐसा व्यक्ति मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध का दोषी है। यदि उसका अपराध संज्ञेय अपराध है और उसे मृत्युदंड, आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे अधिक अवधि के कारावास से दंडनीय किसी अपराध के लिए पहले से ही दोषसिद्ध किया गया है या वह किसी अजमानतीय व संज्ञेय अपराध के लिए दो या अधिक अवसरों पर पहले ही दोषसिद्ध किया जा चुका है। उपधारा 2 के अनुसार जब कभी अन्वेक्षण, जांच या विचारण के दौरान न्यायालय को यह प्रतीत हो कि यद्यपि अभियुक्त ने अजमानतीय अपराध किया है किंतु उसके दोषी होने के बारे में और अधिक जांच की आवश्यकता है, तो वह ऐसी जांच के लंबित रहने तक धारा 446 क के उपबंधों के अधीन रहते हुए उसे जमानत पर या पुलिस अधिकारी या न्यायालय के विवेकानुसार हाजिर होने के लिए प्रतिभुओं रहित बंधनपत्र निष्पादित करने पर छोड़ सकता है।
