Text Practice Mode
साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Nov 21st 2022, 10:00 by Sai computer typing
0
415 words
11 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
00:00
दुनिया में जलवायु परिवर्तन की समस्या जितनी गंभीर होती जा रही है, इससे निपटने के गंभीर प्रयासों का उतना ही अभाव महसूस हो रहा है। मिस्त्र में अंतरराष्ट्रीय जलवायु शिखर सम्मेलन (कॉप-27) में मौसम में अप्रत्याशित बदलाव के कारण गरीब देशों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए धन मुहैया कराने समेत अन्य अहम मुद्दों को लेकर गतिरोध ने इस कड़वी हकीकत को फिर रेखांकित कर दिया कि अमीर देश इस वैश्विक समस्या के प्रति कितने गंभीर है। हालांकि सम्मेलन के समापन पर नुकसान और क्षति कोष स्थापित करने पर सहमति बन गई, लेकिन यह कोष कब तक बनेगा और किस तरह काम करेगा, यह स्पष्ट नहीं है। सम्मेलन में काबूल किया गया कि पिछले सम्मेलन में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए जो संकल्प किया गया था, वह पूरा नहीं हो सका। सभी 197 देशों ने फिर कार्बन उत्सर्जन में तेजी से कमी लाने का संकल्प किया है। कॉप-27 से इसलिए भी काफी उम्मीदें थी कि जलवायु परिवर्तन से पिछले एक साल में दुनिया में हालात और बिगड़े है।
भारतीय उपमहाद्वीप और कई यूरोपीय देशों को भीषण गर्मी तथा बाढ़ की मार झेलनी पड़ी है। भारत का पड़ोसी पाकिस्तान तो इतिहास की सबसे विनाशकारी बाढ़ से अब तक नही उबर पाया है। भारत दिल्ली-एनसीआर और इसके पड़ोसी राज्यों में वायु प्रदूषण की समस्या भी जलवायु परिवर्तन से जुड़ी है। धरती की आबो-हवा बिगाड़ने में रूस-यूक्रेन युद्ध ने आग में घी का काम किया है। इस युद्ध से गैस की सप्लाई में बाधा के कारण कोयला आधारित बिजलीधरों को फिर सक्रिय करना पड़ा। इससे यूरोपीय देशों में मौसम इतना गर्म हुआ कि कई नदियों का पानी सूख गया। कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए दुनियाभर के कोयले का इस्तेमाल घटाने पर जोर दिया जा रहा है, जबकि युद्ध ने कोयले का इस्तेमाल कई गुना बढ़ा दिया।
जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर धरती की हालत मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की वाली है। इसीलिए इसीलिए कॉप-27 में संयुक्त राष्ट्र के महासजिव एंटोनियों गुटेरेस को कहना पड़ा कि हमारी पृथ्वी एक तरह से जलवायु अराजकता की तरफ बढ़ रही है। उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि इंसानी सभ्यता के सामने अब सिर्फ सहायोग करने या खत्म हो जाने का विकल्प बचा है। जाहिर है, पानी सिर के ऊपर से गुजर चुका है। सभी देश कार्बन उत्सर्जन की रोकथाम के साथ-साथ ग्रीहाउस गैसों का उत्सर्जन घटाने और जैव विविधता के नुकसान को खत्म करने के प्रयासों को जितना तेज करेंगे, उसी में सबकी भलाई है। इसके लिए वैश्विक महाअभियान इस समय की सबसे बड़ी जरूरत है।
भारतीय उपमहाद्वीप और कई यूरोपीय देशों को भीषण गर्मी तथा बाढ़ की मार झेलनी पड़ी है। भारत का पड़ोसी पाकिस्तान तो इतिहास की सबसे विनाशकारी बाढ़ से अब तक नही उबर पाया है। भारत दिल्ली-एनसीआर और इसके पड़ोसी राज्यों में वायु प्रदूषण की समस्या भी जलवायु परिवर्तन से जुड़ी है। धरती की आबो-हवा बिगाड़ने में रूस-यूक्रेन युद्ध ने आग में घी का काम किया है। इस युद्ध से गैस की सप्लाई में बाधा के कारण कोयला आधारित बिजलीधरों को फिर सक्रिय करना पड़ा। इससे यूरोपीय देशों में मौसम इतना गर्म हुआ कि कई नदियों का पानी सूख गया। कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए दुनियाभर के कोयले का इस्तेमाल घटाने पर जोर दिया जा रहा है, जबकि युद्ध ने कोयले का इस्तेमाल कई गुना बढ़ा दिया।
जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर धरती की हालत मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की वाली है। इसीलिए इसीलिए कॉप-27 में संयुक्त राष्ट्र के महासजिव एंटोनियों गुटेरेस को कहना पड़ा कि हमारी पृथ्वी एक तरह से जलवायु अराजकता की तरफ बढ़ रही है। उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि इंसानी सभ्यता के सामने अब सिर्फ सहायोग करने या खत्म हो जाने का विकल्प बचा है। जाहिर है, पानी सिर के ऊपर से गुजर चुका है। सभी देश कार्बन उत्सर्जन की रोकथाम के साथ-साथ ग्रीहाउस गैसों का उत्सर्जन घटाने और जैव विविधता के नुकसान को खत्म करने के प्रयासों को जितना तेज करेंगे, उसी में सबकी भलाई है। इसके लिए वैश्विक महाअभियान इस समय की सबसे बड़ी जरूरत है।
saving score / loading statistics ...