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बंसोड कम्प्यूटर टायपिंग इन्स्टीट्यूट छिन्दवाड़ा म0प्र0 प्रवेश प्रारंभ (CPCT, DCA, PGDCA & TALLY)
created Sep 20th 2022, 13:29 by neetu bhannare
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भारतीय दंड संहिता, 1860 धारा 34 सहपठित धारा 149, 302 और 304 सामान्य आशय को अग्रसर करने में कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य जहां एक से अधिक अभियुक्तों पर धारा 149 के साथ पठित धारा 302 के अधीन आरोप लगाया गया हो और उनमें कुछ अभियुक्तों को दोषमुक्त कर दिया गया हो वहां धारा 34 के साथ पठित धारा 302 के अधीन आरोप के अभाव में भी शेष अभियुक्तों को धारा 34 के साथ पठित धारा 302 और धारा 304 के भाग दो के अधीन दोषसिद्ध किया जा सकता है। साक्ष्य अधिनियम, 1872 धारा 3 साक्ष्य यदि प्रथम इत्तिला रिपोर्ट में दिए गए वृतान्त और अभियोजन साक्षियों की परीक्षा में दिए गए वृतान्तों में अंतर पाया जाता है और अभियुक्तों पर लगाए गए स्पष्ट कार्य सिद्ध नहीं हो पाते हैं तो ऐसी असंतोषजनक साक्ष्य की स्थिति में अभियुक्त को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त किया जा सकता है।
वर्तमान अपीलार्थियों अर्थात् अभियुक्त एक से लेकर अभियुक्त तीन तक को विद्वान अपर सेशन न्यायाधीश द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 34 के साथ पठित धारा 304 भाग दो के अधीन दोषसिद्ध ठहराया गया है। किंतु उसी मामले में सात अन्य अभियुक्तों को दोषमुक्त कर दिया गया। अत: विद्वान अपर सेशन न्यायाधीश के निर्णय से व्यथित होकर वर्तमान अपीलार्थी ने उच्च न्यायालय में प्रस्तुत दांडिक अपील फाइल की है। प्रारंभ में यह अपील उच्च न्यायालय के विद्वान एकल न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत की गई थी। अपीलार्थियों के विद्वान काउंसेल ने यह प्रारंभिक मुद्दा उठाया था कि दोषसिद्धि अपने आपमें अवैध है, क्योंकि भारतीय दंड संहिता की धारा 34 के साथ पठित धारा 302 के अधीन कोई आरोप नहीं लगाया है अर्थात् दस अभियुक्त व्यक्तियों पर धारा 149 के साथ पठित धारा 302 के अधीन आरोप लगाया गया हो और उनमें से सात अभियुक्तों को दोषमुक्त कर दिया गया हो तो शेष अभियुक्तों को धारा 34 के साथ पठित धारा 304 भाग दो के अधीन दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता। विद्वान अभियोजक द्वारा अवलंब लिए गए इसी न्यायालय की खंड न्यायपीठ के निर्णय और अपीलार्थियों के विद्वान काउंसेल द्वारा अवलंब लिए गए उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय में मतभेद जाए जाने के कारण विद्वान एकल न्यायाधीश ने इस मामले को खंड न्यायपीठ को निर्दिष्ट कर दिया। इस प्रकार अब यह मामला इस खंड न्यायपीठ के समक्ष प्रस्तुत किया गया है।
जहां केवल भारतीय दंड संहिता की धारा 149 के साथ पठित धारा 302 के अधीन कोई आरोप लगाया गया हो वहां भारतीय दंड संहिता की धारा 34 के साथ पठित धारा 302 के अधीन आरोप के अभाव में भी कुछ अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता की धारा 34 के साथ पठित धारा 302 के अधीन दोषसिद्ध किया जा सकता है।
वर्तमान अपीलार्थियों अर्थात् अभियुक्त एक से लेकर अभियुक्त तीन तक को विद्वान अपर सेशन न्यायाधीश द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 34 के साथ पठित धारा 304 भाग दो के अधीन दोषसिद्ध ठहराया गया है। किंतु उसी मामले में सात अन्य अभियुक्तों को दोषमुक्त कर दिया गया। अत: विद्वान अपर सेशन न्यायाधीश के निर्णय से व्यथित होकर वर्तमान अपीलार्थी ने उच्च न्यायालय में प्रस्तुत दांडिक अपील फाइल की है। प्रारंभ में यह अपील उच्च न्यायालय के विद्वान एकल न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत की गई थी। अपीलार्थियों के विद्वान काउंसेल ने यह प्रारंभिक मुद्दा उठाया था कि दोषसिद्धि अपने आपमें अवैध है, क्योंकि भारतीय दंड संहिता की धारा 34 के साथ पठित धारा 302 के अधीन कोई आरोप नहीं लगाया है अर्थात् दस अभियुक्त व्यक्तियों पर धारा 149 के साथ पठित धारा 302 के अधीन आरोप लगाया गया हो और उनमें से सात अभियुक्तों को दोषमुक्त कर दिया गया हो तो शेष अभियुक्तों को धारा 34 के साथ पठित धारा 304 भाग दो के अधीन दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता। विद्वान अभियोजक द्वारा अवलंब लिए गए इसी न्यायालय की खंड न्यायपीठ के निर्णय और अपीलार्थियों के विद्वान काउंसेल द्वारा अवलंब लिए गए उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय में मतभेद जाए जाने के कारण विद्वान एकल न्यायाधीश ने इस मामले को खंड न्यायपीठ को निर्दिष्ट कर दिया। इस प्रकार अब यह मामला इस खंड न्यायपीठ के समक्ष प्रस्तुत किया गया है।
जहां केवल भारतीय दंड संहिता की धारा 149 के साथ पठित धारा 302 के अधीन कोई आरोप लगाया गया हो वहां भारतीय दंड संहिता की धारा 34 के साथ पठित धारा 302 के अधीन आरोप के अभाव में भी कुछ अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता की धारा 34 के साथ पठित धारा 302 के अधीन दोषसिद्ध किया जा सकता है।
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