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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Sep 20th 2022, 12:45 by lucky shrivatri


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देश में सरकारे जब-जब भी अपने उत्तरदायित्‍वों के निर्वहन में विफल होती दिखती हैं, तब-तब जनता आगे आकर मोर्चा संभालती रही है। राजस्‍थान में जालौर जिले का जसवंतपुरा ऐसे ही मोर्चे की मिसाल बनकर उभरा है। सरकारी स्‍कूल में शिक्षकों के पद रिक्‍त होने से बच्‍चों की पढ़ाई पर असर पड़ने लगा, तो जसवंतपुरा के लोग खुद आगे आए। दूसरों की तरह तो उन्‍होंने सरकार के खिलाफ धरना-प्रदर्शन घेराव किया और ही स्‍कूल के ताले लगाए। ग्रामीणों ने अपने पैसे से सरकारी स्‍कूल में सात शिक्षक नियुक्‍त कर दिए। बच्‍चों के भविष्‍य की खातिर सवा लाख रूपए मासिक वेतन भुगतान कर ग्रामीणों ने सरकारी तंत्र को आईना दिखाने के साथ जनता को भी सीख दी है।  
शिक्षा चिकित्‍सा जैसी सुविधाओं को जनकल्‍याणकारी सरकार का दायित्‍व माना जाता है। सरकारे भी वाहवाही लूटने के लिए स्‍कूल अस्‍पतालों को लेकर लंबे-चौड़े वादे और दावे करने से नहीं चूकती। यह भी सच है कि देश के दूसरे गांवों में भी जसवंतपुरा की तरह लोग अपने स्‍तर पर समाज के लिए कुछ कुछ कर रहे है। इन्‍हें हर काम के लिए सरकार का मुंह ताकना मंजूर नहीं है। ये लोग भामाशाह ककी श्रेणी में भले ही नहीं आते हों, लेकिन उन लोगों के प्रति प्रेरणा स्‍त्रोत आवश्‍य हैं, जो सरकारों के भरोसे बैठे रहते है। ऐसे ही लोगों के दम पर हजारों गांवों में स्‍कूल, अस्‍पताल और धर्मशालाएं चल रही हैं। यह जसवंतपुरा जैसे गांवों में ऐसी पहल होती है। बात  अकेले राजस्‍थान की नहीं है। सब जगह हालात कमोबेश एक जैसे है। राजस्‍थान में 4 साल पहले सरकार आई तो शिक्षकों कके तबादलों के लिए नीति बनाने का ऐलान किया था। आज तक नीति बन ही नही पाई। इसलिए इस बार भी घोषणा के बावजूद तृतीय श्रेणी शिक्षकों के तबादले नहीं हो पाए। ऐसे रसूखदार शिक्षक तो जोड-तोड कर अपने घर के आसपास ही जमे हुए हैं, वहीं नीति की प्रतीक्षा कर रहे शिक्षक बरसों से अपने घर से दूर रहने को मजबूर हैं। कही जरूरत से ज्‍यादा तो कहीं नाम मात्र के शिक्षक होने की समस्‍या इसी विसंगति के कारण ज्‍यादा होती है।   

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