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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Aug 16th 2022, 03:11 by lucky shrivatri


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प्रकृति को बचाने की बात अब पृथ्‍वी तक ही सीमित नहीं रही, अंतरिक्ष को लेकर भी चिंता बढ़ रही है। बिगड़ते हालात से भारत भी आंखे नहीं मूंद सकता। हाल ही बेंगलूरु में इसरो सिस्‍टम फॉर सेफ एंड सस्‍टेनेबल ऑपरेशन सुविधा का उद्घाटन किया गया है। नवीनतम तकनीक विभिन्‍न देशों द्वारा लॉन्‍च किए गए उपग्रहों और रॉकेटों से निकलने वाले मलबे के प्रबंधन में मदद करेगी। इंसान ने ब्रह्मांड को टटोलने के लिए टेलिस्‍कोप और सैटेलाइट बनाने शुरू किए। शुरूआत में यह मात्र जिज्ञासा थी, लेकिन अब जिस तरह से चंद्रमा और मंगल पर हमारी नजर पड़ रही है, वह जिज्ञासा से आगे है। हमारी दृष्टि सीधे उन संसाधनों पर भी है, जिनका पृथ्‍वी पर दोहन कर चुके है। लालच के चलते मनुष्‍य ने जहां एक तरफ समुद्र को भेदना शुरू कर दिया, वहीं दूसरी तरफ उसकी नजर आसमान पर भी जा टिकी। शरुआती दौर में हमने स्‍पेस क्राफ्ट भेजे, ताकि हम अन्‍य ग्रहों के प्रति समझ बना सकें। फिर हमनें चंद्रमा पर चरण डाल दिए और मंगल पर जाने की कोशिश में हैं। हमने जो सैटलाइट, रॉकेट आदि स्‍पेस में भेजे, वे ही गले पड़ने वाले हैं। नेचर एस्‍ट्रोनॉमी पब्लिकेशन के अनुसार, आज अंतरिक्ष में जिस हद तक कूड़ा-करकट भरता चला जा रहा है, वह हमारे लिए घातक साबित होगा। इसकी मात्रा करीब 93,000 टन सॉलिड कूड़े के रूप में हैं और यह यह कूड़ा अगर किन्‍हें कारणों से नीचे जाए, जो इससे काफी नुकसान होगा। वर्तमान में भी करीब तीन हजार से ज्‍यादा सैटेलाइट अंतरिक्ष में बिना किसी उपयोग के लावारिस घूम रहे है। इनके अलावा आज भी करीब दो हजार से ज्‍यादा सैटेलाइट, जिनकी हम क्रियाशील मान रहे है। ब्रह्मांड में चक्‍कर लगा रहे है। हालांकि अभी तक ऐसी कोई भी खबर दुनिया में नहीं आई, जिससे कोई जान-माल का नुकसान इनके गिरने से हुआ हो। पर इस बीच नेचर एस्‍ट्रोनॉमी पत्रिका ने चेतावनी दी है कि विभिन्‍न तरह के सैटेलाइट और स्‍पेसक्राफ्ट आने वाले 10 सालों में कभी भी पृथ्‍वी पर गिर सकते है। यदि ऐसा हुआ तो यह निश्चित ही बड़े नुकसान का कारण बनेगा, जिसे अभी हम गंभीरता से नहीं ले रहे है। अंतरिक्ष में बहुत तेज गति से घूमने वाले टुकड़े अन्‍य अंतरिक्ष संपत्तियों और सक्रिय उपग्रहों के लिए भी खतरा माने जाते है। मिलीमीटर आकार के मलबे से भी टक्‍कर उपग्रहों को नष्‍ट कर सकती है। हर 100 साल में एक बहुत बड़ा उल्‍का पिंड पृथ्‍वी से टकराता ही है। ऐसा ही एक उल्‍का पिंड 30 जून 1908 को रूस में तुन्‍गुस्‍का नदी के किराने घने वन क्षेत्र में गिरा था। इसके कारण 1200 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र प्रभावित हुआ था। इसलिए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले समय में ऐसे कबाड़ के कारण एक बड़ा संकट खड़ा हो सकता है।  

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