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SHAHID MANSOORI, MP HIGH COURT ag3 hindi typing with zero error, khurai, sagar,m.p..... देख रहा है विनोद....सब लोग टाईप कर करके कैंसे चुपचाप निकल जाते हैं....

created Jul 27th 2022, 05:49 by Ghulam Mustafa


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अपील न्‍यायालय ने जिन सन्‍देहात्‍मक परिस्थितियों के आधार पर वसीयतनामा को निरस्‍त किया है, वे परिस्थितियां संदेहात्‍मक नहीं कही जा सकती और उन परिस्थितियों के आधार पर वसीयतनामे को रद्द किया जा सकता है। विशेष रूप से उस समय जबकि वसीयतदार ने वसीयतनामे का निष्‍पादन पूरी तरह से साबित कर दिया है और विशेष रूप से उस समय जबकि वसीयतनामा एक पंजीकृत अभिलेख था। वसीयतनामे के पक्ष में सत्‍यता की अवधारणा है और कोई भी साक्ष्‍य वादी-प्रतिवादीगण देने में असमर्थ रहे हैं जिसके आधार पर वसीयतनामा निरस्‍त किए जाने योग्‍य हो। न्‍यायालय पुन: इस बात पर बल दे रहा है कि वाद पत्र में विनोद एवं वनराकस ने इस बात पर ही अधिक बल दिया था कि वसीयतनामा लिखते समय परसिद्धन जीवित नहीं थे और इसी आधार पर उन्‍होंने मुख्‍य रूप से विल रद्द करानी चाही थी। यह तथ्‍य दोनों न्‍यायालयों ने असत्‍य पाया और स्‍पष्‍ट रूप से लिखा कि परसिद्धन विल लिखने वाले दिन जीवित थे और परसिद्धन की मृत्‍यु के संबंध में मृत्‍यु रजिस्‍टर की जो नकल वादीगण द्वारा दाखिल की गई वह एक कूटरचित अभिलेख था और वादीगण ने गांव सभा का प्रधान होने की अनुमति का लाभ उठाकर उक्‍त कूट रचित दस्‍तावेज बनाया। इस तथ्‍यात्‍मक निष्‍कर्ष से ही यह स्‍पष्‍ट हो जाता है कि विनोद एवं वनराकस ने अपना दावा एक फर्जी दस्‍तावेज के आधार पर दाखिल किया था और दस्‍तावेज के फर्जी पाए जाने के उपरांत विनोद एवं वनराकस के दावे को किसी डिक्री करने का कोई औचित्‍य नहीं था। जो व्‍यक्ति फर्जी दस्‍तावेज उत्‍पन्‍न करने की स्थिति में हो, उस व्‍यक्ति की बात पर विश्‍वास करने का कोई औचित्‍य नहीं है। न्‍यायालय का स्‍पष्‍ट मत है कि जिन संदेहात्‍मक परिस्थितियों के आधार पर वसीयतनामा निरस्‍त किया गया है, वे परिस्थितियां वसीयतनामा लिखने के संबंध में कोई संदेह उत्‍पन्‍न नहीं करती हैं। वे परिस्थितियां कभी भी वाद पत्र में अभिकथित नहीं की गई और उन परिस्थितियों के संबंध में कोई साक्ष्‍य दिया गया। इसलिए उन परिस्थितियों का निराकरण करने का अवसर वसीयतदार को प्राप्‍त नहीं था और इस आधार पर वसीयतनामा निरस्‍त करने योग्‍य नहीं है कि इन परिस्थितियों का निराकरण वसीयतदार ने नहीं किया।

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