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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Jul 1st 2022, 03:56 by Sai computer typing
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चरित्रवान बनने के लिए अपनी आत्मिक शक्ति जगाने की आवश्यकता होती है। तप, संयम और धैर्य से आत्मा बलवान बनती है। कामुकता, लोलुपता, व मानसिक सुखोंं की बात सोचते रहने से ही आत्मशक्ति का नष्ट होती है। अपने जीवन में कठिनाइयों और मुसीबतों को स्थान न मिले तो आत्मशक्ति जागृत नहीं होती। जब तक कष्ट और कठिनाइयों से जूझने का भाव दिल में नहीं आता तब तक चरित्रवान बनने की कल्पना साकार रूप धारण नहींं कर सकती। चरित्र निर्माण के लिये साहित्य का अत्यधिक महत्व है। महापुरूषों की जीवन कथाओं से स्वयं भी वही बनने की इच्छा होती है। विचारों को शक्ति प्रदान करने वाला साहित्य आत्मनिर्माण में अतिशय योग देता है। इससे आन्तरिक विशेषताएं जागृत होती हैं। अच्छी पुस्तकों से प्राप्त प्रेरणा सच्चे मित्र का कार्य करती है। इससे जीवन की सही दिशा का ज्ञान होता है। इसके विपरीत अश्लील साहित्य अध:पतन का कारण बनता है। जो साहित्य मानसिक को उत्तेजित करे, उससे सदा सौ कोस दूर रहें। इनसे चरित्र दूषित होता है। साहित्य का चूनाव करते समय, यह देख लेना अनिवार्य है कि उसमें मानवता के अनुरूप विषयों का सम्पादन हुआ है। अथवा नहीं। यदि कोई पुस्तक मिल जाये तो उसे ही सच्ची रामायण, गीता आदि पवित्र पुस्तकों के समतुल्य मानकर वर्णित आदर्शों से अपने जीवन को उच्च बनाने का प्रयास करें तो चारित्रिक संगठन की बार स्वत: पूरी होने लगती है। हमारी वेषभूषा व खानपान भी हमारे विचारों तथा रहनसहन को प्रभावित करते हैं। चुस्त व अजीब फैशन के वस्त्र मस्तिष्क पर अपना दूषित प्रभाव डालने से चूकते नहीं। इनसे हमेशा सावधान रहें। वस्त्रों में सादगी और सरलता मनुष्य की महानता का परिचय है। इससे किसी भी अवसर पर कठिनाई नहीं होती। मन और बुद्धि की निर्मलता, पवित्रता पर इनका सौम्य प्रभाव होता है। यही बात खानपान के सम्बन्ध में भी है। आहार की सादगीऔर सरलता से विचार भी वही बनते हैं। मादक द्रव्य मिर्च, मसाले, मांस तरह के उत्तेजक पदार्थों से चरित्रबल क्षीण होता है। और पशुवृत्ति जागृत होती है। वर्तमान समय में तथाकथित रूप से चीन से आई महामारी का कारण भी वहां के लोगों की मांसाहारी प्रवृत्ति को दिया जा रहा है जो हर किसी प्राणी का मांस खाने के लिए कुख्यात है। खानपान की आवश्यकता स्वास्थ्य रहने के लिए होती है न कि शरीर और विचारबल को दूषित बनाने का। आहर में स्वादप्रियता से मनोविकार उत्पन्न होते हैं। अत: भोजन जो ग्रहण करें, वह जीवन रक्षा के लिए हो तो भावनायें भी उच्च होती हैं। चरित्र की रक्षा प्रत्येक मूल्य पर की जानी चाहिये। इससे छोटेछोटे कामों की भी उपेक्षा करना ठीक नहीं। उठना, बैठना, वार्तालाप, मनोरंजन के समय भी मर्यादाओं का पालन करने से उक्त आवश्यकता पूरी होती है। सभ्यता का प्रतीक सच्चरित्र, सादा जीवन और उच्च विचारों को माना गया है। इससे जीवन में मधुरता औ स्वच्छता का समावेश होता है। जीवन की सम्पूर्ण मलिनतायें नष्ट होकर नए प्रकाश का उदय होता है जिससे लोग अपना जीवन लक्ष्य तो पूरा करते ही हैं औरों को भी सुवासित तथा लाभान्वित करते हैं। जीवन सार्थकता की साधना चरित्र है। सच्चे सुख का आधार भी यही है। इसलिए प्रयत्न यही रहे कि हमारा चरित्र सदैव उज्ज्वल रहे, उदात्त रहे।
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