Text Practice Mode
SHREE BAGESHWAR ACADEMY TIKAMGARH (M.P.) HINDI MATTER Contact- 8103237478
created Jun 24th 2022, 03:02 by Shreebageshwar Academy
0
366 words
11 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
00:00
आठ नवंबर, 2016 को हुई नोटबंदी के कुछ दिन बाद दक्षिण भारत के दो राज्यों की कुछ दिनों की यात्रा ने मुझे यह बात अच्छी तरह याद दिला दी थी कि कैसे दक्षिण भारत के राज्य उत्तर के राज्यों से अलग हैं। वहां बैंकों के बाहर पुराने नोट बदलने की कोई कतार नहीं दिख रही थी। क्रेडिट या डेबिट कार्ड के जरिये या वॉलेट भुगतान अथवा ऑनलाइन लेनदेन अपेक्षाकृत आसान था। दुकानदार भी इस बात पर जोर नहीं देते थे कि हम कुछ खरीदने के बदले नकद राशि ही दें। टूर ऑपरेटर भी बिना किसी अतिरिक्त भुगतान के पुराने नोट लेने को तैयार थे। अपेक्षाकृत शांति थी और जीवन सहज और तनावमुक्त नजर आ रहा था। यह सिलसिला उत्तर भारत के शहरों और कस्बों के एकदम उलट था। न केवल राजधानी नई दिल्ली बल्कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार और यहां तक कि गुजरात के कई इलाकों में भी बैंकों के बाहर लोग लंबी कतार लगाये पुराने नोट बदलने की कोशिश में खड़े थे। इन जगहों के कारोबारी भी ऑनलाइन भुगतान लेने के इच्छुक नहीं थे और नकदी पर जोर दे रहे थे। कुछ मिलाकर असहज करने वाला माहौल था।
2020 और 2021 में किसानों द्वारा तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करने पर भी ऐसा ही घटनाक्रम हुआ। पहले माना जा रहा था कि इन कृषि कानूनों का विरोध देशव्यापी है और पूरे देश के किसान इन कानूनों को लेकर परेशान हैं। लेकिन महाराष्ट्र और पक्ष्चिम बंगाल में कुछ शुरुआती विरोध के बाद किसान आंदोलन जल्दी ही पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार के किसानों का आंदोलन बनकर रह गया। दक्षिण भारत के किसानों ने इन नये कानूनों की अनदेखी की। एक बार फिर दक्षिण के राज्यों ने केंद्र के नीतिगत फैसले पर उत्तर के राज्यों की तुलना में अलग ढंग से प्रतिक्रिया दी। पिछले कुछ दिनों से मोदी सरकार की सैनिक भर्ती योजना अग्निपथ को लेकर भी विरोध का सिलसिला मोटे तौर पर उत्तर भारत में ही केंद्रित है। तेलंगाना में कुद घटनाएं हुईं लेकिन बाद के दिनों में विरोध मोटे तौर पर उत्तर भारत में सीमित रहा है। इससे पता चलता है कि कैसे केंद्र की अहम नीतिगत पहलों को लेकर दक्षिण भारत का रुख उत्तर से एकदम अलग है।
2020 और 2021 में किसानों द्वारा तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करने पर भी ऐसा ही घटनाक्रम हुआ। पहले माना जा रहा था कि इन कृषि कानूनों का विरोध देशव्यापी है और पूरे देश के किसान इन कानूनों को लेकर परेशान हैं। लेकिन महाराष्ट्र और पक्ष्चिम बंगाल में कुछ शुरुआती विरोध के बाद किसान आंदोलन जल्दी ही पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार के किसानों का आंदोलन बनकर रह गया। दक्षिण भारत के किसानों ने इन नये कानूनों की अनदेखी की। एक बार फिर दक्षिण के राज्यों ने केंद्र के नीतिगत फैसले पर उत्तर के राज्यों की तुलना में अलग ढंग से प्रतिक्रिया दी। पिछले कुछ दिनों से मोदी सरकार की सैनिक भर्ती योजना अग्निपथ को लेकर भी विरोध का सिलसिला मोटे तौर पर उत्तर भारत में ही केंद्रित है। तेलंगाना में कुद घटनाएं हुईं लेकिन बाद के दिनों में विरोध मोटे तौर पर उत्तर भारत में सीमित रहा है। इससे पता चलता है कि कैसे केंद्र की अहम नीतिगत पहलों को लेकर दक्षिण भारत का रुख उत्तर से एकदम अलग है।
saving score / loading statistics ...