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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created May 24th 2022, 08:26 by Jyotishrivatri
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आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया की राह चलकर श्रीलंका जैसा हाल होने में देर नहीं लगती। आय से अधिक खर्च करके वाहवाही लूटने की कोशिश में श्रीलंका के जो हालात बने, वे उसे कहां ले जाएंगे, कोई नहीं जानता? श्रीलंका ही नहीं, दुनिया के 69 दूसरे देश भी ऐसे ही संकट से गुजर रहे हैं। पहले कोरोना महामारी और अब रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते दुनियाभर के बाजारों में पिछले दो साल से मंदी छाई हुई है। तेल व खाद्यान्न पदार्थों के संकट ने आग में घी डालने का काम किया है। ब्याज दरें बढ़ने से संकट गहराया है।
बात सिर्फ विकासशील देशों की ही नहीं, दुनिया की अनेक आर्थिक महाशिक्तियां भी आर्थिक मंदी के भंवरजाल में फंस चुकी है। विश्व बैंक लंबे समय से चेतावनी देता आ रहा है। उसका मानना है कि कर्ज के बढ़ते बोझ तले दबकर कई देश दिवालिया हो सकते हैं। पर सत्ता में बैठे लोग इस संकट को खुली आंखों से भी नहीं देख रहे। कर्ज में गले तक डूबी श्रीलंका सरकार ने अपनी आमदनी बढ़ाने के प्रयास करने के बजाए टैक्स में खूब कटौती की। अब नतीजा सबके सामने है। आर्थिक मंदी की छाप भारत पर पड़ने की आशंका जताई जा रही है। चिंता की बात यह है कि वोटों की फसल पकाने के लालच में देश के आधे राज्य दिवालियापन की कगार पर पहुंच चुके हैं। चुनाव जीतने के लोभ में सरकारे मुफत रेवडि़यां बांटकर वाहवाही लूटने में व्यस्त हैं। राजस्थान में आज तक जितना कर्ज लिया गया है, उसका एक चौथाई पिछले तीन साल में लिया गया है। राजस्व का बड़ा हिस्सा वेतन-भत्तों और ब्याज चुकाने में खर्च हो रहा है। मुफ्त की रेवडि़यां बांटने वाले राज्यों को आर्थिक विशेषज्ञों की ओर से दी जा रही चेतावनियां बेअसर हैं। खतरे की घंटी को अभी नहीं सुना गया तो परिणाम गंभीर ही होने हैं। सरकारों ने रवैया न बदला, तो श्रीलंका जैसे हालात रोके नहीं जा सकेंगे। फिर चाहे अफ्रीकी एशियाई देश हों या भारत।
रूस-यूक्रेन युद्ध कितने दिन चलेगा, किसी को पता नहीं? कोई नहीं जानता कि चीन और ताइवान के बीच युद्ध की चिंंगारी कब भड़क उठे। ऐसे में आर्थिक मंदी के साथ-साथ खाद्यान्न संकट विकराल रूप धारण कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र खुली चेतावनी दे रहा है कि 2008 के बाद दुनिया इस समय सबसे बड़ा खाद्यान्न संकट झेल रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार, रूस और यूक्रेन एक चौथाई गेहूं की आपूर्ति करते हैं। घरेलू बाजार में कीमतों पर नियंत्रण के लिए भारत ने गेहूं निर्यात पर पाबंदी तो लगा दी है लेकिन वैश्विक संकट से भारत कितने दिन बचा रह पाएगा, देखने वाली बात होगी।
बात सिर्फ विकासशील देशों की ही नहीं, दुनिया की अनेक आर्थिक महाशिक्तियां भी आर्थिक मंदी के भंवरजाल में फंस चुकी है। विश्व बैंक लंबे समय से चेतावनी देता आ रहा है। उसका मानना है कि कर्ज के बढ़ते बोझ तले दबकर कई देश दिवालिया हो सकते हैं। पर सत्ता में बैठे लोग इस संकट को खुली आंखों से भी नहीं देख रहे। कर्ज में गले तक डूबी श्रीलंका सरकार ने अपनी आमदनी बढ़ाने के प्रयास करने के बजाए टैक्स में खूब कटौती की। अब नतीजा सबके सामने है। आर्थिक मंदी की छाप भारत पर पड़ने की आशंका जताई जा रही है। चिंता की बात यह है कि वोटों की फसल पकाने के लालच में देश के आधे राज्य दिवालियापन की कगार पर पहुंच चुके हैं। चुनाव जीतने के लोभ में सरकारे मुफत रेवडि़यां बांटकर वाहवाही लूटने में व्यस्त हैं। राजस्थान में आज तक जितना कर्ज लिया गया है, उसका एक चौथाई पिछले तीन साल में लिया गया है। राजस्व का बड़ा हिस्सा वेतन-भत्तों और ब्याज चुकाने में खर्च हो रहा है। मुफ्त की रेवडि़यां बांटने वाले राज्यों को आर्थिक विशेषज्ञों की ओर से दी जा रही चेतावनियां बेअसर हैं। खतरे की घंटी को अभी नहीं सुना गया तो परिणाम गंभीर ही होने हैं। सरकारों ने रवैया न बदला, तो श्रीलंका जैसे हालात रोके नहीं जा सकेंगे। फिर चाहे अफ्रीकी एशियाई देश हों या भारत।
रूस-यूक्रेन युद्ध कितने दिन चलेगा, किसी को पता नहीं? कोई नहीं जानता कि चीन और ताइवान के बीच युद्ध की चिंंगारी कब भड़क उठे। ऐसे में आर्थिक मंदी के साथ-साथ खाद्यान्न संकट विकराल रूप धारण कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र खुली चेतावनी दे रहा है कि 2008 के बाद दुनिया इस समय सबसे बड़ा खाद्यान्न संकट झेल रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार, रूस और यूक्रेन एक चौथाई गेहूं की आपूर्ति करते हैं। घरेलू बाजार में कीमतों पर नियंत्रण के लिए भारत ने गेहूं निर्यात पर पाबंदी तो लगा दी है लेकिन वैश्विक संकट से भारत कितने दिन बचा रह पाएगा, देखने वाली बात होगी।
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