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मंगल टाईपिंग (INDIANA)

created May 24th 2022, 03:10 by gg


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पंडित अलोपीदीन अपने सजीले रथ पर सवार, कुछ सोते, कुछ जागते  चले आते थे। अचानक कई गाड़ीवानों ने घबराए हुए आकर जगाया और बोले,“महाराज! दरोगा ने गाड़ियों रोक दी हैं और घाट पर खड़े आपको बुलाते हैं।”
पंडित अलोपीदीन का लक्ष्मी जी पर अखंड विश्वास था। वह कहा करते थे कि संसार का तो कहना ही क्या स्वर्ग में लक्ष्मी का ही राज्य है। उनका यह कहना यथार्थ ही था। न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, इन्हें वह जैसे चाहती हैं नाचती है, लेटे ही लेटे गर्व से बोले, चलो हम आते हैं। यह कहकर पंडित जी ने बड़ी निश्चिंतता से पान के बीड़े लगाकर खाए, फिर लिहाफ़ ओढ़े हुए दारोगा के पास आकर बोले,“बाबूजी हमसे ऐसा कौन सा अपराध हुआ कि गाड़ियाँ रोक दी गई। हम ब्राह्मणों पर तो आपकी कृपा-दृष्टि रहनी चाहिए।”
वंशीधर रुखाई से बोले,“सरकारी हुक्म।”
पंडित अलोपीदीन ने हंसकर कहा,“हम सरकारी हुक्म को नहीं जानते और सरकार को , हमारे सरकार तो आप ही हैं। हमारा और आपका तो घर का मामला है, हम कभी आपसे बाहर हो सकते हैं? आपने व्यर्थ का कष्ट उठाया। यह हो नहीं सकता कि इधर से जाएं और इस घाट के देवता को भेंट चढ़ावें मैं तो आपकी सेवा में स्वयं ही रहा था।”
वंशीधर पर ऐश्वर्य की मोहिनी वंशी का कुछ प्रभाव पड़ा। ईमानदारी की नई उमंग थी। कड़डककर बोले,“हम उन नमकहरामों में नहीं हैं, जो कौड़ियों पर अपना ईमान बेचते फिरते हैं, आप इस समय हिरासत में हैं। आपको कायदे के अनुसार चालान होगा। बस , मुझे अधिक बातों की फुर्सत नहीं है। जमादार बदलू सिंह! तुम इन्हें हिरासत में ले चलो, मैं हुक्म देता हूं।”
शायरी
कुछ अलग करना है तो  
भीड़ से हटके चलिए,
भीड़ साहस तो देती है  
मगर पहचान छीन लेती है।
उपरोक्त गद्यांश में जो भी कुछ आपको गलत लगा हो उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ।
 
 

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