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created May 23rd 2022, 06:16 by HAKIM001


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एक स्‍वामी अपने सेवक द्वारा किये गये आपराधिक कृय के लिए सामान्‍य रूप से दायित्‍वाधीन है यदि सेवक ने वह कृत्‍य स्‍वामी की सहमति, मौनानुकूलता या ज्ञान में किया था या स्‍वामी ने कृत्‍य के लिये प्रेरित किया था, परन्‍तु प्रश्‍न उठता है कि क्‍या सेवक के उन कार्यों जो उसने अपने मालिक की सहमति के बिना अपनी नौकरी के दौरान किया था, के यिे भी मालिक जिम्‍मेदार है? स्‍वामी अपने सेवक द्वारा किये गये अनधिकृत आपराधिक सत्‍य के लिये दायित्‍वाधीन नहीं है। आपराधिक रूप में केवल वह व्‍यक्ति दण्‍डनीय है जिसने स्‍वयं अपराध किया है या जिसकी सहमति से दूसरे ने अपराध किया है। परन्‍तु इस सिद्धांत के निम्‍नलिखित अपवाद हैं- यद्यपि प्रथम दृष्टि में स्‍वामी अपने सेवक द्वारा किये गये आपराधिक कृत्‍य के लिये दायित्‍वाधीन नहीं होता फिर भी विधानांग किसी कृत्‍य को निषिद्ध कर सकती है या किसी दायित्‍व को इस प्रकार प्रवर्तित कर सकती है जिससे प्रतिषेध या दायित्‍वपूर्ण हो जाए। परिस्थिति में यदि कार्य उसके सेवक द्वारा सचमुच किया गया है तो वह अवश्‍य दायित्‍वाधीन होगा। पूर्ण दायित्‍व के निर्धारण हेतु हमें संविधि के उद्देश्‍य, उसमें प्रयुक्‍त शब्‍दों तथा आरोपित दायित्‍व की प्रकृति पर ध्‍यान देना चाहिये। भारतीय दण्‍ड संहिता की धारा 154 द्वारा स्‍वामी, या भूमि पर दखल रखने वाले व्‍यक्ति पर सांविधिक दायित्‍व आरोपित किया गया है यदि उसका अभिकर्ता या मैनेजर पुलिस अधिकारी को विधिविरुद्ध सभा या बलवा जो उसके ज्ञान में उस जमीन पर धारित हो रहा है, की सूचना देने में असमर्थ रहता है। सांविधिक दायित्‍व अन्‍य बहुत से अधिनियमों के अन्‍तर्गत भी उत्‍पन्‍न किया गया है जैसे अफीम अधिनियम, भोजन अपमिश्रण निवारण अधिनियम, तथा जुआ अधिनियम इत्‍यादि। किसी कार्य का स्‍वामी अपने अभिकर्ता द्वारा अपने के लाभ के लिये किये गये कार्य से उत्‍पन्‍न सार्वजनिक न्‍यूसेंस के लिये दायित्‍वाधीन है यदि न्‍यूसेंस अभिकर्ता द्वारा कार्य को करते समय उत्‍पन्‍न होती है यद्यपि वह कार्य स्‍वामी के ज्ञान के बिना एवं उसके सामान्‍य आदेशों विरुद्ध किया गया हो। यदि कोई व्‍यक्ति दूसरों के लिये खतरा उत्‍पन्‍न कर सकने वाले किसी कार्य के संपादन में उपेक्षा करता है तथा उसे अनिपुण व्‍यक्तियों के हाथाें में सौंप देता है कुद मामलों में वह दण्डित किया जा सकता है।  

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