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prayas shorthand computer typing classes, Add- Shri Jagdish Plaza Meera Premi nurshing home ke pass old housing board colony morena (Madhya Pradesh) Mob no. 8770183459
created May 20th 2022, 04:46 by prayashshorthand classes
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अधिकतर भारतीयों को लगता है कि स्त्रियो के बारे मे हमारे जो मानदंड है ,वे उदारवाद और पारम्परिकता के बीच सही संतुलन बनाते है। वे कहेंगे कि भारतीय महिलाएं पश्चिमी दुनिया के बीच स्त्रियों की तरह स्वच्छंद नहीं,लेकिन अरब दुनिया की तरह बंधनों में जकड़ी हुई भी नहीं हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि आज भारतीय महिलाओं की कामकाज में सहभागिता की दर अनेक अरब देशों से भी कम हो गई है। दरअसल, बहुतेरे अरब देशों में यह दर बढ़ रहीं है। वहीं भारत में घट रहीं है। मिसाल के तौर पर सऊदी अरब की स्त्रियों का वर्क पार्टिसिपेशन रेट भारतीय महिलाओं से अधिक है। हाल के वर्षों में सऊदी अरब में अनेक सुधार हुए हैं, जिससे लौगिंक विभेद में कमी आई है। 2016 में सऊदी महिलाओं की श्रमशाक्ति में सहभागिता 18% थी,वहीं 2020 में वह 33% हो गई थी। भारत में स्थिति विपरीत है। सरकारी आंकड़ों की मानें तो 2012 में यह दर 31% थी, जो 2021 में घटकर 21% हो गई। सेंटर फॉर मानिटरिंग द इंडियन इकोनॉमी का डाटा तो और कम आंकडें बताता है।
आप इससे इस निष्कर्ष पर पहुंचने की जल्दबाजी कर सकते है। कि भारत में लौंगिक विषमता बढ़ रही है और उच्च विकासदर के बावजूद महिलाओं को पर्याप्त अवसर नहीं मिले। लेकिन वास्तविकता थोड़ी जटिल है, जैसा कि मैंने हाल ही की कुछ फील्ड़ विजिट्स में पाया। जो तथ्य उभरकर सामने आए, उनका संबंध बाजार से कम और संस्कृतिक और सामाजिक मानकों से अधिक था। परम्परागत रूप से हमारे यहां महिलाओं के नौकरी करने का प्रोत्साहन नहीं दिया जाता। इसमें जातिगत विभाजन और प्रवासियों की बढ़ती संख्या को जोड़ें तो एक पेचीदा तस्वीर उभरती है। अपनी
फील्ड़ विजिट्स के दौरान मैंने महिलाओं के अनेक समूहों से पूछा कि ग्रामीण भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या क्यों घट रही है। पूर्वी उत्तरप्रदेश के एक दलित बहुल गांव में एक समूह ने बताया कि इसका मुख्य कारण यौन उत्पीड़न है। एक महिला ने कहा कि अतीत मे यौन उत्पीड़न सामान्य बात थी, लेकिन हमें ये मंजूर नहीं इसलिए काम छोंड़ दिया। हमारी यह बातचीत सुन रहें एक पुरूष ने कहा कि बिरादरी में उन घरों की इज्जत नहीं की जाती है, जिनकी औरतें बाहर जाकर काम करती हैं।
आप इससे इस निष्कर्ष पर पहुंचने की जल्दबाजी कर सकते है। कि भारत में लौंगिक विषमता बढ़ रही है और उच्च विकासदर के बावजूद महिलाओं को पर्याप्त अवसर नहीं मिले। लेकिन वास्तविकता थोड़ी जटिल है, जैसा कि मैंने हाल ही की कुछ फील्ड़ विजिट्स में पाया। जो तथ्य उभरकर सामने आए, उनका संबंध बाजार से कम और संस्कृतिक और सामाजिक मानकों से अधिक था। परम्परागत रूप से हमारे यहां महिलाओं के नौकरी करने का प्रोत्साहन नहीं दिया जाता। इसमें जातिगत विभाजन और प्रवासियों की बढ़ती संख्या को जोड़ें तो एक पेचीदा तस्वीर उभरती है। अपनी
फील्ड़ विजिट्स के दौरान मैंने महिलाओं के अनेक समूहों से पूछा कि ग्रामीण भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या क्यों घट रही है। पूर्वी उत्तरप्रदेश के एक दलित बहुल गांव में एक समूह ने बताया कि इसका मुख्य कारण यौन उत्पीड़न है। एक महिला ने कहा कि अतीत मे यौन उत्पीड़न सामान्य बात थी, लेकिन हमें ये मंजूर नहीं इसलिए काम छोंड़ दिया। हमारी यह बातचीत सुन रहें एक पुरूष ने कहा कि बिरादरी में उन घरों की इज्जत नहीं की जाती है, जिनकी औरतें बाहर जाकर काम करती हैं।
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