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SHREE BAGESHWAR ACADEMY TIKAMGARH (M.P.) Contact- 8103237478
created May 19th 2022, 03:30 by Shreebageshwar Academy
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अदालतें कुछ मामलों में तो बुलेट ट्रेन की रफ्तार से रातों-रात सुनवाई करके प्रभावी फैसला कर देती हैं। लेकिन बकाया मामले पैसेंजर गति से आगे बढ़ते हैं। अयोध्या विवाद एक मिसाल है। कई दशकों तक अदालतों में घिसटने के बाद इच्छाशक्ति जाग्रत होने पर कुछ महीनों में ही निर्णायक फैसला हो गया। काशी की तर्ज पर आगे चलकर मथुरा और ताजमहल मामलों में भी सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम आदेश पारित हो सकते हैं, लेकिन अंतिम फैसले के लिए संविधान पीठ का गठन करना होगा। धर्मस्थल कानून 1991 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएं पिछले एक साल से सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। अयोध्या फैसले में पांच जजों की बेंच ने 1991 के कानून को धर्मनिरपेक्षता और समानता के लिहाज से अहम बताते हुए वैध ठहराया था। अब काशाी और मथुरा के विवाद को निपटाने के लिए 1991 के कानून की वैधता पर पुनर्विचार करना होगा। 7 जजों की संविधान पीठ का गठन करना पड़ सकता है। सुनवाई और फैसले में लम्बा समय लग सकता है। राम मंदिर आंदोलन के उफान के समय 1991 में नरसिम्हाराव सरकार जब यह कानून लाई तो भाजपा ने पुरजोर विरोध करते हुए उसे संसदीय समिति को भेजने की मांग की थी। विरोध के उन्हीं बिंदुओं पर आगे चलकर सुप्रीम कोर्ट में लम्बी-चौड़ी बहस होगी। एक, धार्मिक स्थल से जुड़े मामले राज्यों के दायरे में आते हैं तो केंद्र ने इस बारे में कैसे कानून बनाया। दो, 15 अगस्त 1947 की तारीख का मनमाफिक तरीके से निर्धारण होने से हिंदू, जैन और सिख धर्मावलंबियों के संवैधानिक अधिकार आहत हुए हैं। तीन, जहां अधिकार हैं वहां उपचार भी होना चाहिए, लेकिन इस कानून से लोगों के संवैधानिक अधिकारों का हनन हुआ है। चार, संविधान के अनुच्छेद 13 और बेसिक स्ट्रक्चर के खिलाफ होने के कारण इस कानून को रद्द कर देना चाहिए। अदालती लड़ाई से अलग, पूरे विवाद में तीन सवाल उभरते हैं। पहला, अगर 1991 में यह कानून नहीं बनाता तो भी धार्मिक विवादों को बढ़ने से कैसे रोक जा सकता था। दूसरा, मध्यकाल में कानून का शासन नहीं होने से धर्मान्ध सुल्तानों और बादशाहों ने धार्मिक स्थलों को रौंदा। लेकिन आजादी के बाद संवैधानिक तंत्र के दायरे में मध्यकाल की बर्बरता के खिलाफ न्याय कैसे हो। तीसरा, राम मंदिर आंदोलन के समय नारा था काशी-मथुरा बाकी है। काशी की तर्ज पर अब मथुरा और हजारों अन्य धार्मिक स्थलों के सर्वे और वीडियोग्राफी की मांग का छोटा स्वर सोशल मीडिया के माध्यम से राष्ट्रीय अभियान में बदल सकता है। तो धर्मान्धता के रक्तबीज के प्रसार और प्रतिकार को कानून या अदालत के फैसले के कैसे रोका जाए। यूरोप में धर्मयुद्ध, पुनर्जागरण, औद्योगिक क्रांति, पूंजीवाद, उपनिवेशवाद के बाद डिजिटल क्रांति और अब चांद पर बस्ती बसाने की तैयारी हो रही है। दूसरी तरफ भारत में एक फीसदी से कम आबादी यूनिकॉर्न और डिजिटल क्रांति की लहर पर सवार है। बकाया आबादी के हाथों में मध्यकालीन मुद्दों का डंडा थमाया जा रहा है। ज्ञानवापी पर मीडिया की सुर्खियां बढ़ने के बाद भाजपा सांसद ने कृषि कानूनों की तर्ज पर धर्मस्थल कानून को रद्द करने की मांग कर डाली। सर्वे रिपोर्ट उजागर होने के बाद उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री मौर्य ने कहा सत्य पूरी दुनिया के सामने प्रगट हो गया है।
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