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मंगल टाईपिंग (INDIANA)
created May 17th 2022, 03:42 by gg
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गाल और ठोड़ी का उभार मानो है ही नहीं और वहां से उनके ऊपर नाक मानों तलवार की तरह उठी हुई। आंखें छोटी किन्तु तीखी, उनकी नजर मानो तीर की धार की तरह दूर अदृश्य में अपना निशाना ढूंढ रही हो, किन्तु पल-भर में ही लौटकर पास की चीज पर भी बिजली की-सी चोट कर सकती हो। देखने पर गौरमोहन को खूबसूरत नहीं कह जा सकता, किन्तु उसे देखे बिना रहा भी नहीं जा सकता, लोगों के बीच भी आंखें एकाएक उस पर टिक जाती हैं।
और उसका दोस्त विनय आम पढ़े-लिखे बंगाली भद्र मानष की तरह विनम्र किन्तु स्पष्ट, स्वभाव की कोमलता और बुद्धि की तेजी के मेल ने उसके चेहरे को एक विशेष प्रभा दे दी है। कालेज में बराबर अच्छे नम्बर और वजीफा पाता रहा है, गोरा किसी तरह भी उसके बराबर नहीं चल सका। पाठ्य विष्यों की ओर गोरा का वैसा रुझान नहीं रहा, विनय की भांति वह बात को न तो जल्दी समझ सकता था, न याद रख पाता था। विनय मानो उसका वाहन बनकर उसे अपने पीछे-पीछे कालेज के कई इम्तिहानों से पार खींचता है।
गोरा कह रहा था,“जो कहता हूँ, सुनो। अविनाश जो ब्राह्मणों की निन्दा कर रहा था उससे यही जान पड़ता है कि वह ठीक, सही और स्वाभाविक अवस्था में है। इस पर तुम एकाएक ऐसे क्यों बिगड़ पड़े?”
“क्या आजीब बात है। उस बारे में कोई प्रश्न भी हो सकता है, मैं तो सोच नहीं सकता था।”
“ऐसा है तो तुम्हारे ही मन में कहीं कोई खोट है। लोगों का एक दल समजा के बन्धन तोड़कर हर बात में उलटा चलने लगे, और समजा को लेग चुपचाप भाव से उनकी बातों पर सद्भावना से विचार करते रहे, यह स्वाभाविक नियम नहीं है। समाज के लोग उनको गलत समझेंगे ही। वह जो सीधा करेंगे इनकी नजरों में वह टेढ़ा दिखेगा ही, उनका भला इनके नजदीक बुरा होगा ही और ऐसा होना उचित भी है। मनमाने ढंग से समाज तोड़कर निकल जाने की जो-जो सजाएं है, यह भी उनमें से एक हैं।”
शायरी
मंजिलें मुझे छोड़ गयी रास्तों ने संभाल लिया,
जिंदगी तेरी जरूरत नहीं मुझे हादसों ने पाल लिया.
उपरोक्त गद्यांश के टंकण में कोई कहीं त्रुटी हो तो मुझे क्षमा कीजिए
और उसका दोस्त विनय आम पढ़े-लिखे बंगाली भद्र मानष की तरह विनम्र किन्तु स्पष्ट, स्वभाव की कोमलता और बुद्धि की तेजी के मेल ने उसके चेहरे को एक विशेष प्रभा दे दी है। कालेज में बराबर अच्छे नम्बर और वजीफा पाता रहा है, गोरा किसी तरह भी उसके बराबर नहीं चल सका। पाठ्य विष्यों की ओर गोरा का वैसा रुझान नहीं रहा, विनय की भांति वह बात को न तो जल्दी समझ सकता था, न याद रख पाता था। विनय मानो उसका वाहन बनकर उसे अपने पीछे-पीछे कालेज के कई इम्तिहानों से पार खींचता है।
गोरा कह रहा था,“जो कहता हूँ, सुनो। अविनाश जो ब्राह्मणों की निन्दा कर रहा था उससे यही जान पड़ता है कि वह ठीक, सही और स्वाभाविक अवस्था में है। इस पर तुम एकाएक ऐसे क्यों बिगड़ पड़े?”
“क्या आजीब बात है। उस बारे में कोई प्रश्न भी हो सकता है, मैं तो सोच नहीं सकता था।”
“ऐसा है तो तुम्हारे ही मन में कहीं कोई खोट है। लोगों का एक दल समजा के बन्धन तोड़कर हर बात में उलटा चलने लगे, और समजा को लेग चुपचाप भाव से उनकी बातों पर सद्भावना से विचार करते रहे, यह स्वाभाविक नियम नहीं है। समाज के लोग उनको गलत समझेंगे ही। वह जो सीधा करेंगे इनकी नजरों में वह टेढ़ा दिखेगा ही, उनका भला इनके नजदीक बुरा होगा ही और ऐसा होना उचित भी है। मनमाने ढंग से समाज तोड़कर निकल जाने की जो-जो सजाएं है, यह भी उनमें से एक हैं।”
शायरी
मंजिलें मुझे छोड़ गयी रास्तों ने संभाल लिया,
जिंदगी तेरी जरूरत नहीं मुझे हादसों ने पाल लिया.
उपरोक्त गद्यांश के टंकण में कोई कहीं त्रुटी हो तो मुझे क्षमा कीजिए
