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ACADEMY FOR STENOGRAPHY, MORENA,DIR- BHADORIYA SIR TYPING MPHC DISTRICT COURT AG-3 TEST 14-05-2022
created May 14th 2022, 11:40 by mahaveer kirar
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अभियुक्त-अपीलार्थियों को परिवादी के घर में अतिचार करने और जान से मारने की धमकी देते हुए घातक आयुधों की नोंक पर अभियोक्त्री के साथ बलात्संग करने के अपराध के लिए विद्वान सेशन न्यायाधीश द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 448, 506 और 376 के अधीन दोषसिद्ध और दण्डादिष्ट किया गया है। अत: विद्वान सेशन न्यायाधीश के निर्णय के विरुद्ध अपीलार्थियों द्वारा उच्च न्यायालय में प्रस्तुत अपील फाइल की गई है। अपील मंजूर करते हुए यदि अभियोजन साक्षी 10 का साक्ष्य विश्वसनीय और संतोषजनक पाया जाता है तो किसी भी संपुष्टि की आवश्यकता नहीं हो सकती। तथापि, उसके साक्ष्य की उसके पुत्र अभियोजन साक्षी 11 के साक्ष्य से संपुष्टि होती है। अत: सुसंगत प्रश्न यह है कि क्या अभियुक्तों को दोषी ठहराने के लिए उसके साक्ष्य पर विश्वास किया जाना चाहिए। इन साक्षियों को दिए गए ऐसे किसी भी सुझाव को अत्यधिक महत्व नहीं देना चाहिए क्योंकि यदि कोई मिथ्या मामला गढ़ा जा सकता है तो वह किसी भी अन्य प्रकृति का हो सकता है, बलात्कार का नहीं जिसमें किसी स्त्री की पवित्रता का सवाल है। अत: न्यायालय को केवल यह देखना है कि क्या अभियुक्त व्यक्तियों को संभोग करने देने के लिए अभियोजन साक्षी 10 की ओर से कोई स्वेच्छया सहमति दिए जाने की संभावना है। इस बात को कोई भी स्पष्टीकरण सामने नहीं आया है कि किस कारण उसने अपने संबंधियों के पास जाने से पहले अपनी सफाई कर डाली। इस प्रकार जब डाक्टर ने उसकी परीक्षा की थी तब व्यावहारिक रूप से सके साथ संभोग किए जाने का कोई चिह्न नहीं था। उसने यह झूठा ही अभिसाक्ष्य दिया है कि उसके द्वारा परिवाद फाइल किए जाने के तुरंत पश्चात् उसकी अलदुर अस्पताल की महिला चिकित्सक द्वारा परीक्षा की गई थी किन्तु अभियोजन साक्षी 12 के अनुसार अलदुर अस्पताल में कोई भी महिला चिकित्सक नहीं थी और उन्होंने चिकमगलूर सरकारी अस्पताल के डाक्टर के पास उसे भेज दिया था। जब उसने ऐसा मिथ्या बयान दिया हो तब उस पर कैसे विश्वास किया जा सकता है और यदि स्वयं को और अधिक विश्वसनीय और सत्यतापूर्ण बनाने के लिए आदेश किया गया है।
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