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मंगल टाईपिंग (INDIANA)
created May 9th 2022, 01:15 by gg
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सावन की सुबह। बादल छट जाने के बाद बिखरी हुई धूप से कलकत्ता का आसमान भर गया है। सड़कों पर घोड़ा-गाड़ियाँ लगातार दैड़ रही हैं, फेरीवाले बिना रूके पुकारे जा रहे हां, जिन्हें ऑफिस, कालेज और कोर्ट-कचहरी जाना है उनके लिए घर-घर मछली-सब्जी तैयार की जा रही है और रसोइघरों से अंगीठी जनाले का धूआं उठ रहा है। फिर भी इस इतने बड़े, सख्त-दिल कामकाजी शहर कलकत्ता की सैकड़ों सड़कों-गलियों के भीतर सोने की चमचमाती धारा आज मानों एक अद्भुत यौवन की बाढ़ लिए बह निकली है।
ऐसे दिन अवकाश के समय वनियभूषण अपने घर की दूसरी मंजिल के बरामदे में अकेला खड़ा नीचे रास्ता चलने वालों की भाग-दौड़ देख रहा था। बहुत दिन हुए उसकी कालेज की पढ़ाई पूरी हो गई थी, पर दुनियावी जिन्दगी में अभी उसका दाखिला नहीं हुआ था, ऐसी ही विनय की हालत मन लगाया था, किन्तु उसका मन पूरा रम गया हो, ऐसा नहीं था। तभी आज सबेरे क्या किया जाए, यह सोच न पाने पर उसका मन अकुला उठा था। पड़ोस के घर की छत पर तीन-चार कौए कुछ लिए कांव-कांव कर रहे थे, और उसके बरामदे के एक कोने में घोसला बनाने में मगल चिड़ियों का जोड़ा चहचहाकर एक-दूसरे को बढ़ावा दे रहे थे। ऐसे ही बहुत से मिले-जूले स्वर विनय के मन में एक धूँधला उत्साह जगा रहे थे।
पास की एक दुकान के सामने फटे-चिटे कपड़े पहने हुए एक बाउल खड़ा होकर गाने लगा। विनय का मन हुआ, बाउल को बुलाकर अनजान चिड़िया का यह गान लिख ले। किन्तु जैसे बड़े तड़के सर्दी लगते रहने पर भी खीचकर चादर ओढ़ लेने की कोशिश नहीं की जाती, वैसे ही एक आलस के कारण न तो बाउल को बुलाया गया, न गान ही लिखा गया; केवल अनजाल चिड़िया का वह सुर मन में गूंजता रह गया।
अकस्मात उसके घर के ठीक सामने ही एक बग्घी ेक घोड़ागाड़ी से टकराकर उसका एक पहिया तोड़ती हुई मुड़कर बिना देखे तेजी से आगे निकल गई। घोड़ागड़ी उलटी तो नहीं पर एक ओर को लुढ़क गई। विनय ने जल्दी से सड़क पर आकर देखा, गाड़ी से सत्रह-अठारह साल की एक लड़की निकल पड़ी है और वह बीतर से एक अधेड़ उम्र के सज्जन को अतारने की कोशिश कर रही है।
हंसने की इच्छा ना हो...
तो भी हसना पड़ता है...
कोई जब पूछे कैसे हो...?
तो मजे में हूँ कहना पड़ता है...
ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों....
यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है।
उपरोक्त गद्यांश में गलतीयों से हुए असुविधा के लिए दोस्त मान के क्षमा कर दीजिए।
ऐसे दिन अवकाश के समय वनियभूषण अपने घर की दूसरी मंजिल के बरामदे में अकेला खड़ा नीचे रास्ता चलने वालों की भाग-दौड़ देख रहा था। बहुत दिन हुए उसकी कालेज की पढ़ाई पूरी हो गई थी, पर दुनियावी जिन्दगी में अभी उसका दाखिला नहीं हुआ था, ऐसी ही विनय की हालत मन लगाया था, किन्तु उसका मन पूरा रम गया हो, ऐसा नहीं था। तभी आज सबेरे क्या किया जाए, यह सोच न पाने पर उसका मन अकुला उठा था। पड़ोस के घर की छत पर तीन-चार कौए कुछ लिए कांव-कांव कर रहे थे, और उसके बरामदे के एक कोने में घोसला बनाने में मगल चिड़ियों का जोड़ा चहचहाकर एक-दूसरे को बढ़ावा दे रहे थे। ऐसे ही बहुत से मिले-जूले स्वर विनय के मन में एक धूँधला उत्साह जगा रहे थे।
पास की एक दुकान के सामने फटे-चिटे कपड़े पहने हुए एक बाउल खड़ा होकर गाने लगा। विनय का मन हुआ, बाउल को बुलाकर अनजान चिड़िया का यह गान लिख ले। किन्तु जैसे बड़े तड़के सर्दी लगते रहने पर भी खीचकर चादर ओढ़ लेने की कोशिश नहीं की जाती, वैसे ही एक आलस के कारण न तो बाउल को बुलाया गया, न गान ही लिखा गया; केवल अनजाल चिड़िया का वह सुर मन में गूंजता रह गया।
अकस्मात उसके घर के ठीक सामने ही एक बग्घी ेक घोड़ागाड़ी से टकराकर उसका एक पहिया तोड़ती हुई मुड़कर बिना देखे तेजी से आगे निकल गई। घोड़ागड़ी उलटी तो नहीं पर एक ओर को लुढ़क गई। विनय ने जल्दी से सड़क पर आकर देखा, गाड़ी से सत्रह-अठारह साल की एक लड़की निकल पड़ी है और वह बीतर से एक अधेड़ उम्र के सज्जन को अतारने की कोशिश कर रही है।
हंसने की इच्छा ना हो...
तो भी हसना पड़ता है...
कोई जब पूछे कैसे हो...?
तो मजे में हूँ कहना पड़ता है...
ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों....
यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है।
उपरोक्त गद्यांश में गलतीयों से हुए असुविधा के लिए दोस्त मान के क्षमा कर दीजिए।
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