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सॉंई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Nov 27th 2021, 02:42 by Sai computer typing
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एक तरफ राजनेताओं पर आरोप लगता है कि वे प्रशासनिक मशीनरी को कठपुतली बनाकर रखते हैं, वहीं ऐसी शिकायतें भी कम नहीं आती जिनमें कहा जाता है कि अफसरों ने राजनेताओं को मुट्ठी में कर रखा है। देश की नौकरशाही को जुड़ता का शिकार बताते हुए शीर्ष अदालत यदि फटकार लगाती है तो उसकी भी बड़ी वजह ब्यूरोक्रेसी और राजनेताओं को लेकर बनती जा रही यह जनधारणा ही है। सुप्रीम कोर्ट ने भले ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदुषण से निपटने के उपायों पर असंतोष जाहिर करते हुए नौकरशाही को आड़े हाथ लिया हो लेकिन कमोबेश सभी मामलों नौकरशाही का रवैया टालमटोल करने जैसा रह गया है। अलबत्ता समूचा सिस्टम उस वक्त हरकत में जरूर आता है जब या तो कोर्ट कोई आदेश दे या फिर राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़े। अफसरशाही चाहे पुलिस से जुड़ी हो या प्रशासन से, बदनाम भी इसीलिए होती हैं क्योंकि नियम-कायदों के तहत काम करने के बजाए राजनेताओं का मुंह ताकती दिखती है। राजनेताओं के उचित-अनुचित निर्देश पर काम करते वक्त अफसरशाही की जड़ता न जाने कहां फुर्र हो जाती है। चिंता की बात यह हैं कि न तो नौकरशाह इस बात को समझते है न ही राजनेता कि उनकी प्राथमिकता जनता से जुड़े कामों को क्रियान्वित करने की होनी चाहिए। शीर्ष अदालत जब ब्यूरोक्रेसी पर निष्क्रियता पूरी तरह हावी होने की बात कहे तो यह चिंता और बढ़ जाती है। लौहपुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल तो शीर्ष नौकरशाही यानी आइएएस वर्ग को स्टील फ्रेम की संज्ञा देते थे। ऐसा फ्रेम, जिस पर सरकारों के आने-जाने का असर नहीं हो और वे पक्षपात रहित होकर काम करें। लेकिन ऐसा लगता है कि ब्यूरोक्रेसी का कोई अपना फ्रेम ही नहीं रह गया है। कार्यपालिका भले ही लोकतंत्र में अहम हिस्सा रहती आई है लेकिन जब विधायिका व कोर्ट के आदेश भी ताक पर रखे जाने लगे तो यह धारणा प्रबल होती दिखती है कि सरकारों को नौकरशाही ही चलाती है। जयपुर के रामगढ़ बांध के मामले में कोर्ट के आदेशों की अवहेलना होते सब देख रहे है। प्रदूषण की रोकथाम में विफल रहने पर तल्ख टिप्पणियां करते हुए शीर्ष अदालत ने नौकरशाही को आइना तो दिखाया है लेकिन रानीतिक नेतृत्व को भी लोककल्याणकारी सरकारों की जिम्मेदारी समझनी होगी। ब्यूरोक्रेसी में कर्मनिष्ठ लोगो की कमी नहीं है। बात-बात में रोड़े अटकाने वाले अफसरों को चिह्नित करने के साथ उनको चेताना भी जरूरी है। इसके साथ ही राजनीतिक दखलंदाजी कम हो, तब जाकर ही जनता से जुडे काम गति पकड़ सकेंगे।
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