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created Nov 27th 2021, 02:04 by sachin bansod
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विश्व स्तर पर सूचना के अधिकार की बारे में जब भी हम पीछे देखते हैं या इसके इतिहास पर नजर डालते हैं तब हमें पता चलता है कि इसको नई पहचान तब मिली जब वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स को अपनाया गया। इसके माध्यम से सभी को मीडिया या किसी अन्य माध्यम से सूचना मांगने एवं प्राप्त करने का अधिकार दिया गया। अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति थॉमस जैफरसन ने कहा, सूचना लोकतंत्र की मुद्रा होती है एवं किसी भी जीवंत सभ्य समाज के उद्भव और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
भारत में भी लोकतंत्र को मजबूत करने और शासन में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से भारत की संसद ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 लागू किया। अंग्रेजों ने भारत पर लगभग 250 वर्षों तक शासन किया। इसी दौरान शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1923 बनाया गया, जिसके अन्तर्गत सरकार को यह अधिकार हो गया कि वह किसी भी सूचना को गोपनीय कर सकेगी। लेकिन, सन 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने बाद 26 जनवरी 1950 को नया संविधान लागू हुआ। लेकिन हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान में सूचना के अधिकार का कोई वर्णन नहीं किया और न ही अंग्रेजों द्वारा बनाए हुए शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1923 में संशोधन किया। सूचना के अधिकार के प्रति सजगता वर्ष 1975 की शुरूआत में उत्तर प्रदेश सरकार बनाम राज नारायण से हुई, जिसकी सुनवाई उच्चतम न्यायालय में हुई। इसी दौरान न्यायालय ने अपने आदेश में लोक प्राधिकारियों द्वारा सार्वजनिक कार्यों का ब्यौरा जनता को प्रदान करने की व्यवस्था दी। उसके इस निर्णय ने नागरिकों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दायरा बढ़ाकर सूचना के अधिकार को शामिल कर दिया। सूचना के अधिकार की मांग सर्वप्रथम राजस्थान से प्रारम्भ हुई। इसके लिए 1990 के दशक में जनान्दोलन की शुरूआत हुई, जिसमें मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) ने अरूणा राय की अगुवाई में भ्रष्टाचार के भांडाफोड़ के लिए जनसुनवाई कार्यक्रम शुरू किया।
भारत में भी लोकतंत्र को मजबूत करने और शासन में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से भारत की संसद ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 लागू किया। अंग्रेजों ने भारत पर लगभग 250 वर्षों तक शासन किया। इसी दौरान शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1923 बनाया गया, जिसके अन्तर्गत सरकार को यह अधिकार हो गया कि वह किसी भी सूचना को गोपनीय कर सकेगी। लेकिन, सन 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने बाद 26 जनवरी 1950 को नया संविधान लागू हुआ। लेकिन हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान में सूचना के अधिकार का कोई वर्णन नहीं किया और न ही अंग्रेजों द्वारा बनाए हुए शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1923 में संशोधन किया। सूचना के अधिकार के प्रति सजगता वर्ष 1975 की शुरूआत में उत्तर प्रदेश सरकार बनाम राज नारायण से हुई, जिसकी सुनवाई उच्चतम न्यायालय में हुई। इसी दौरान न्यायालय ने अपने आदेश में लोक प्राधिकारियों द्वारा सार्वजनिक कार्यों का ब्यौरा जनता को प्रदान करने की व्यवस्था दी। उसके इस निर्णय ने नागरिकों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दायरा बढ़ाकर सूचना के अधिकार को शामिल कर दिया। सूचना के अधिकार की मांग सर्वप्रथम राजस्थान से प्रारम्भ हुई। इसके लिए 1990 के दशक में जनान्दोलन की शुरूआत हुई, जिसमें मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) ने अरूणा राय की अगुवाई में भ्रष्टाचार के भांडाफोड़ के लिए जनसुनवाई कार्यक्रम शुरू किया।
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